VIKASAN

· MEHTA PUBLISHING HOUSE
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’विकसन’ वि. स. खांडेकरांच्या सन 1971 ते 1973च्या काळात लिहिलेल्या भावकथांचा संठाह. या कथांत कल्पना, भावना नि विचारांचा सुरेख संगम आढळून येतो.’विकसन’मधील कथांची सात्त्विक रंजनाची स्वत:ची अशी आगळी शक्ती आहे. या कथा वाचकांच्या मनात दीर्घकाळ रेंगाळत रहातात, त्या कथांतील वाचकांना अंतर्मुख करण्याच्या क्षमतेमुळे. खांडेकरांनी आपल्या जीवनाच्या उत्तरार्धात काहीशा स्वास्थ्यानी लिहिलेल्या ’विकसन’मधील कथांत कला विकासाबरोबर गहरं असं जीवन चिंतनही आहे.जीवनातील वानप्रस्थाचं चित्रण करणार्या या कथांतील पात्रांचं जीवन गतकालातील मधुर स्मृतींना जागवत वर्तमानाचं वैषम्य, कटु सत्य स्वीकारतं. येणार्या नव्या पिढीला आपलं जीवन-संचित बहाल करणार्या या संठाहातील कथा भूतकाळाने वर्तमानास दिलेलं जीवन पाथेय होय. गृहस्थ-जीवन पुनर्जन्म असतो असं समजाविणार्या या कथा सांगतात की पुढच्या जन्मात माणसास मागच्या जन्माचं थोडंच आठवतं ? लग्नापूर्वी आपण फुलपाखरं असतो... लग्नानंतर पाखरं होतो... पाखरांना घरटी बांधावी लागतात... पिलांना सांभाळावं लागतं... एका मागून एक तडजोडीत पूर्व जीवन विस्मरून नव्या जीवनात रममाण होतो. पूर्व जीवन विसरायला लावणारं लग्न पुनर्जन्मच नाही का ? 

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