पद्मश्री उषाकिरण खान का जन्म 24 अक्टूबर, 1945 को लहेरियासराय, दरभंगा जिले में हुआ जो उत्तर बिहार में अवस्थित है। उनके माता-पिता गाँधीवादी स्वतन्त्रता सेनानी थे।
उनकी स्कूली शिक्षा दरभंगा में ही हुई। विश्वविद्यालयी शिक्षा पटना में हुई। प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्व में उषाजी ने एम.ए., पीएच.डी. पटना विश्वविद्यालय से किया एवं मगध विश्वविद्यालय के डिग्री कॉलेज से विभागाध्यक्ष पद से 2005 को रिटायर कर गयी।
इनका रुझान बचपन से ही साहित्य की ओर था तथा इन्होंने विपुल साहित्य संस्कृत, पालि, अंग्रेजी तथा हिन्दी में प्राचीन से लेकर आधुनिक तक पढ़ा है। इनके पिता का गाँधीवादी आश्रम कोशी के पश्चिमी तटबन्ध की ओर था जहाँ इनका लालन-पालन हुआ।
उषाजी की पहली कहानी इलाहाबाद से निकलने वाली यशस्वी पत्रिका 'कहानी' में प्रकाशित हुई। उषाकिरण जी पहली ग्रामीण कथा उपन्यास लेखिका हैं, उसके बाद कई लेखिकाएँ उभरकर आयीं।
अब इन्होंने अपनी मातृ-भाषा मैथिली में भामती एवं हिन्दी में सिरजनहार, अगिन हिंडोला एवं सीमान्त कथा लिखकर ऐतिहासिक उपन्यासों की ओर दृष्टिपात किया है। उषाजी की दिनांक के बिना (आत्मकथा) पाठकों के बीच काफ़ी लोकप्रिय है।
उषाकिरण जी विश्व हिन्दी सम्मेलन में प्रतिनिधि के रूप में सूरीनाम तथा न्यूयॉर्क जा चुकी हैं एवं भोजपुरी सम्मेलन में मॉरीशस गयीं।
बिहार राष्ट्रभाषा का हिन्दीसेवी सम्मान, बिहार राजभाषा विभाग का महादेवी वर्मा सम्मान, दिनकर राष्ट्रीय पुरस्कार, साहित्य अकादेमी पुरस्कार, कुसुमांजलि पुरस्कार, विद्यानिवास मिश्र पुरस्कार एवं पद्मश्री और भारत भारती सम्मान से सम्मानित।
उषाकिरण जी सामाजिक क्रियाकलापों में बेहद सक्रिय हैं। आयाम की अध्यक्षा हैं।