कपड़ों पर आए दागों को बड़ी खूबसूरती से दूर करने के लिए, किसी ऐसे चित्रकार के स्पर्श की आवश्यकता होती है, जो दागों को फूलों में परिवर्तित कर दे... ठीक वैसे ही आपके जीवन को परमात्मा के स्पर्श की आवश्यकता होती है। तो स्वयं से पूछें कि क्या आपके जीवन में परमात्मा का स्पर्श हुआ है? यदि नहीं! तो परमात्मा की खोज रोज़ होनी चाहिए। सोचकर देखें...
- जब कोई इंसान सफलता की खोज शुरू करता है तब सभी रिश्तेदार उसे बधाई देते हैं।
- वह जब कुर्सी (पोस्ट) की खोज शुरू करता है तो अड़ोस-पड़ोस के सारे लोग उसे प्रोत्साहन देते हैं।
- किसी को यदि आप कहें कि ‘मैं करोड़पति बनने जा रहा हूँ’ तो सारे लोग तालियाँ बजाने के लिए तैयार होते हैं।
- अगर आप राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं तो विरोधी पार्टी छोड़कर सारी प्रजा आपके लिए तैयार होती है।
- सिर्फ पति भी बनने जा रहे हैं तो पूरी बारात आपके साथ चलती है।
मगर... ‘हम जो हकीकत में हैं’, वह बनने के लिए कोई आपको प्रोत्साहित नहीं करेगा, आप परमात्मा की खोज करने जा रहे हैं तो कोई आपके लिए ताली नहीं बजाएगा। यह ताली आपको स्वयं के लिए बजानी होगी।
यह ताली आप तब बजा पाएँगे, जब आप परमात्मा की खोज को सबसे महत्वपूर्ण मानेंगे। यदि आपके भीतर परमात्मा प्राप्ति की सच्ची प्यास है तो यकीन मानिए परमात्मा आपसे केवल ७ कदम दूर है। इन ७ कदमों की यात्रा आप इस पुस्तक द्वारा पूर्ण कर सकते हैं।
सरश्री की आध्यात्मिक खोज का सफर उनके बचपन से प्रारंभ हो गया था। इस खोज के दौरान उन्होंने अनेक प्रकार की पुस्तकों का अध्ययन किया। इसके साथ ही अपने आध्यात्मिक अनुसंधान के दौरान अनेक ध्यान पद्धतियों का अभ्यास किया। उनकी इसी खोज ने उन्हें कई वैचारिक और शैक्षणिक संस्थानों की ओर बढ़ाया। इसके बावजूद भी वे अंतिम सत्य से दूर रहे।
उन्होंने अपने तत्कालीन अध्यापन कार्य को भी विराम लगाया ताकि वे अपना अधिक से अधिक समय सत्य की खोज में लगा सकें। जीवन का रहस्य समझने के लिए उन्होंने एक लंबी अवधि तक मनन करते हुए अपनी खोज जारी रखी। जिसके अंत में उन्हें आत्मबोध प्राप्त हुआ। आत्मसाक्षात्कार के बाद उन्होंने जाना कि अध्यात्म का हर मार्ग जिस कड़ी से जुड़ा है वह है - समझ (अंडरस्टैण्डिंग)।
सरश्री कहते हैं कि ‘सत्य के सभी मार्गों की शुरुआत अलग-अलग प्रकार से होती है लेकिन सभी के अंत में एक ही समझ प्राप्त होती है। ‘समझ’ ही सब कुछ है और यह ‘समझ’ अपने आपमें पूर्ण है। आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्ति के लिए इस ‘समझ’ का श्रवण ही पर्याप्त है।’
सरश्री ने ढाई हज़ार से अधिक प्रवचन दिए हैं और सौ से अधिक पुस्तकों की रचना की हैं। ये पुस्तकें दस से अधिक भाषाओं में अनुवादित की जा चुकी हैं और प्रमुख प्रकाशकों द्वारा प्रकाशित की गई हैं, जैसे पेंगुइन बुक्स, हे हाऊस पब्लिशर्स, जैको बुक्स, हिंद पॉकेट बुक्स, मंजुल पब्लिशिंग हाऊस, प्रभात प्रकाशन, राजपाल अॅण्ड सन्स इत्यादि।