GUDGULYA

· MEHTA PUBLISHING HOUSE
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१९२० ते १९२५ या पाच वर्षांच्या संक्रमणकाळानंतर मराठी ललित वाड्मयात नवनवीन लेखकांनी आपापली वैशिष्ट्यपूर्ण दालने उघडली. विनोदाच्या क्षेत्रात चिंतामण विनायक जोशी यांनी आपली स्वतंत्र; परंतु खणखणीत नाममुद्रा उमटवली. याआधी मराठीतील विनोदाचे स्वरूप निबंधासारखे होते. चिंतामणरावांनी त्याला गोष्टीचे वळण दिले. त्यांच्या प्रतिभेने आजवर लाखो वाचकांना हसवले आहे. आपल्या दु:खांची शल्ये बोथट करून घेण्याच्या कामी त्यांना साहाय्य केले आहे. एकीकडे गुदगुल्या करीत, दुसरीकडे त्यांना आपल्या लहान-मोठ्या विसंगतींची जाणीव करून दिली आहे. व्यक्तिजीवनातल्या आणि समाजजीवनातल्या अनेक नव्या-जुन्या विसंवादी गोष्टींवर त्यांनी प्रकाश टाकला आहे. विविधता, सरसता व वास्तवता ही त्यांच्या विनोदशैलीची गुणवैशिष्ट्ये म्हणता येतील. या छोट्याशा पुस्तकात वानवळा म्हणून संग्रहीत केलेल्या त्यांच्या निवडक सहा विनोदी कथांवरून त्यांच्या बाह्यत: अत्यंत साध्या दिसणाऱ्या, पण विलक्षण मार्मिक असलेल्या विनोदी-दृष्टीचा संचार किती अप्रतिहत आहे, हे वाचकांना सहज कळून येईल.

Humours, light and entertaining stories by V.S. Khandekar

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