Gumnam Hakikat: A Forgotten History

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डोर से जुड़ा पतंग...आसमान की उँचाई पर बुलंदियों का परचम लहरा देता है। पर, डोर कट जाए तो उसे जमीन पर आते अधिक देर नहीं लगती। यही हाल इंसान का है। जब तक वह अपनी सभ्यता और संस्कृति से जुड़ा है, तभी तक उसका बौद्धिक विकास संभव है। विरासत को भूलना नहीं, बल्कि उससे सीख लेना चाहिए। विरासत की बुनियाद गहरा हो, तो विकासवाद की प्रगतिशील राह को मजबूत किया जा सकता है। क्योंकि, जड़ मजबूत नहीं हो, तो इमारत की आयु लंबी नहीं होगी। अपनी विरासत को भूलने वालों का अक्सर पतन हो जाता है। इतिहास इस तरह के मिसालों से भरा पड़ा है।

           ‘माया सभ्यता’ का नष्ट होना इसका सबसे बड़ा मिसाल है। कृषि पर आधारित प्राचीनकालीन माया सभ्यता का मुख्य केंद्र मैक्सिको में हुआ करता था। यह ग्वाटेमाला, होंडुरास और अल-सल्वाडोर तक फैला हुआ था। कहते हैं कि ईसा से करीब 1500 वर्ष पूर्व तक यह सभ्यता अपनी उन्नति के शिखर पर था। किंतु, विकासवाद की आँधी में माया जनजाति अपने जड़ों से उखड़ गई। नतीजा, प्रचीनकालीन माया सभ्यता अब इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह गया है। आधुनिक काल में अफगानिस्तान के लोग अपनी प्राचीन ‘सूफी’ परंपरा के जड़ों से कटने का दंश झेल रहे हैं। मिल्लत की बेजोड़ मिसाल पेश करने वाला सूफी परंपरा अब विलुप्त होने के कगार पर है। ऐसे और भी कई उदाहरण मौजूद है। लिहाजा, अपनी गौरवमयी विरासत को संभालने का मेरा यह लघु प्रयास, आपसे स्नेह की उम्मीद रखता है। इससे पहले मेरी पहली पुस्तक ‘अनहद’ को आपका भरपूर स्नेह मिल चुका है। इस स्नेह के लिए दिल की गहराई से आपका आभार प्रकट करता हूँ।

           इस दूसरी पुस्तक में मैंने मीनापुर और इसके आस-पास की कुछ ऐसी जानकारियों को सहेजने का प्रयास किया है, जिसका जुड़ाव राष्ट्रीय पटल से है। पर, कतिपय कारणों से आज यह हमारे स्मृति पटल से विलुप्त होने लगा है। इसका संबंध हमारे गौरवशाली विरासत से है...पूर्वजों के बलिदान से है...और हमारे आत्मगौरव की अनुभूति से है। इस पुस्तक में उस रहस्यमयी स्तंभ का जिक्र है, जिसे लम्हों की खामोशी ने उलझा दिया है। इतिहास के पन्नों में दर्ज वह अतीत, जो आज हमारे विकासवाद के खोखले दावों के बीच दम तोड़ रहा है। अध्यात्म का वह विशाल केंद्र, जहाँ दशकों पहले रूढ़िवाद ने दम तोड़ा था। वह कालजयी महामानव, जिसके ‘कैवल्य दर्शन’ के समक्ष दुनिया नतमस्तक है। परसौनी राजवंश का बनता-बिगड़ता साम्राज्य और ढहते-ढनमनाते इमारत के खंडहर में बिखरे पड़े हुकूमत की दास्तान...। इस पुस्तक में उन्हीं यादों को समेटने-सहेजने की कोशिश की गई है। इसके अतिरिक्त हमारे शहर की पहचान बन चुकी लीची हो या फिर हमारे तबाही का सबब बना बाढ़ की समस्या...। इस पुस्तक में मैंने विलुप्त हो रही स्मृति को नई ऊर्जा से भरने का भरसक प्रयास किया है। बेशक, इसमें और भी बहुत कुछ भरा जा सकता था। पर, कतिपय कारणों से यह हो नहीं सका। सवाल ये नहीं है कि क्या नहीं हुआ? बल्कि, सोचना ये है कि जो हुआ, वह भी कम कठिन नहीं था। इसके लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जिन लोगों ने मदद की है, उन सभी लोगों के प्रति हृदय की गहराई से आभार प्रकट करता हूँ। विशेषकर उन लोगों का, जिन्होंने इसको लिखने की प्रेरणा दी। शब्दों का समर्पण दिया और भावनाओं के अतिरेक से निकलकर स्नेह का संबल दिया।

इस पुस्तक में कई स्वतंत्रता सेनानी का जिक्र किया गया है। जाहिर है इसके अतिरिक्त यहाँ दर्जनों महान स्वतंत्रता सेनानी हैं, जिनका इस पुस्तक में जिक्र नहीं है। बेशक, उन्होंने भी ब्रिटिश हुकूमत की यातनाएँ झेली होगी, जेल भी गये होंगे। स्वतंत्रता सेनानी पेंशन का उन्हें लाभ मिला होगा, संभव है नहीं भी मिला हो...। ऐसे भी कई लोग मिले, जिनके पास स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े होने का प्रमाण मौजूद है, पर इस पुस्तक में उनका जिक्र नहीं है। क्योंकि, इस पुस्तक में मैंने 11 अगस्त 1942 से 16 अगस्त 1942 के बीच हुई घटनाओं का जिक्र किया है। सिर्फ पाँच रोज की घटनाक्रम के दौरान जिन लोगों को आरोपित किया गया था, इसमें सिर्फ उन्हीं की चर्चा है। संभव है कि अनजाने में इनमें से भी कुछ लोगों का नाम छूट गया हो। वैसे सभी महान विभूतियों को श्रद्धापूर्वक नमन करते हुए उनके परिजनों से क्षमा चाहता हूँ। मैंने जिस चार्जशीट के हवाले से यह जानकारी इकट्ठा किया है, वह सैकड़ों पन्नों की मोटी पुस्तक के समान है। शुद्ध अन्त:करण से उन्हीं जानकारी को इस पुस्तक में रखने की भरपूर कोशिश की गई है। हालाँकि, हर संभव कोशिश के बाद भी अध्ययन और लेखन की त्रुटि से इनकार नहीं किया जा सकता है।

पुस्तक में दी गई अन्य विषयों की जानकारी को भी अध्ययन और लोकश्रुति को आधार बनाकर लिखा गया है। इसमें सभी के भावनाओं का समान रूप से आदर समाहित है। बावजूद इसके यदि किसी की भावनाओं को ठेस पहुँचे तो उन सभी के प्रति आदर व्यक्त करते हुए विनम्रता सहित क्षमाप्रार्थी हूँ। दूसरी ओर यदि यह पुस्तक आपको उपयोगी लगे और यह आपका तनिक भी ज्ञानवर्धन करता हुआ प्रतीत हो, तो मेरा प्रयास सफल माना जायेगा। मुझे आपके स्नेह से लबरेज शब्दों का सदैव इंतजार रहेगा।

लेखक के बारे में

कौशलेन्द्र झा मुख्य रूप से पत्रकार और लेखक हैं। इनकी लिखी हुई पुस्तक ‘अनहद’ पहले ही प्रकाशित हो चुकी है। ये “KKN लाइव” के संस्थापक संपादक और “KKN मीडिया ग्रुप” के चेयरपर्सन हैं। राजनीति शास्त्र में स्नातकोत्तर (एम.ए.) की शिक्षा ग्रहण करने के बाद लगातार तीन दशक से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हैं। सामाजिक संस्था अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संघ (भारत) के साथ वर्ष 2004 में जुड़े, वर्ष 2009 तक बिहार (मीडिया प्रकोष्ठ) के प्रदेश सचिव रहे और वर्ष 2009 से 2020 तक बिहार के प्रदेश अध्यक्ष के पद पर रहते हुए लोगों के कल्याणार्थ हेतु कई कार्य को संपन्न किया। अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संघ (भारत) के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष के द्वारा वर्ष 2011 में “मानवाधिकार मीडिया रत्न” से सम्मानित हो चुके हैं। इससे पहले उन्होंने एक सामाजिक संस्था “किसान मजदूर संघ” की स्थापना किया। इसको कालांतर में बिहार सरकार से मान्यता प्राप्त हुआ। इससे जुड़ कर वर्ष 1987 से 1991 तक समाज सेवा के क्षेत्र में कई उल्लेखनीय कार्य को अंजाम दिया। भारत सरकार के “केंद्रीय श्रमिक शिक्षा बोर्ड” से जुड़ कर वर्ष 1988 से 2011 तक बिहार के कई जिला के ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले असंगठित मजदूर के बीच सामाजिक जागरूकता अभियान चलाया और लोगों को संगठित करने की दिशा में उल्लेखनीय कार्य को अंजाम तक पहुँचाया है। वर्ष 1990 के दशक में बिहार शिक्षा परियोजना के लिए शैक्षणिक कार्यों का पर्यवेक्षण करने का भी अनुभव है। मुख्य रूप से इनकी रुचि पढ़ने और लिखने में है।


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About the author

कौशलेन्द्र झा मुख्य रूप से पत्रकार और लेखक हैं। इनकी लिखी हुई पुस्तक ‘अनहद’ पहले ही प्रकाशित हो चुकी है। ये “KKN लाइव” के संस्थापक संपादक और “KKN मीडिया ग्रुप” के चेयरपर्सन हैं। राजनीति शास्त्र में स्नातकोत्तर (एम.ए.) की शिक्षा ग्रहण करने के बाद लगातार तीन दशक से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हैं। सामाजिक संस्था अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संघ (भारत) के साथ वर्ष 2004 में जुड़े, वर्ष 2009 तक बिहार (मीडिया प्रकोष्ठ) के प्रदेश सचिव रहे और वर्ष 2009 से 2020 तक बिहार के प्रदेश अध्यक्ष के पद पर रहते हुए लोगों के कल्याणार्थ हेतु कई कार्य को संपन्न किया। अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संघ (भारत) के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष के द्वारा वर्ष 2011 में “मानवाधिकार मीडिया रत्न” से सम्मानित हो चुके हैं। इससे पहले उन्होंने एक सामाजिक संस्था “किसान मजदूर संघ” की स्थापना किया। इसको कालांतर में बिहार सरकार से मान्यता प्राप्त हुआ। इससे जुड़ कर वर्ष 1987 से 1991 तक समाज सेवा के क्षेत्र में कई उल्लेखनीय कार्य को अंजाम दिया। भारत सरकार के “केंद्रीय श्रमिक शिक्षा बोर्ड” से जुड़ कर वर्ष 1988 से 2011 तक बिहार के कई जिला के ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले असंगठित मजदूर के बीच सामाजिक जागरूकता अभियान चलाया और लोगों को संगठित करने की दिशा में उल्लेखनीय कार्य को अंजाम तक पहुँचाया है। वर्ष 1990 के दशक में बिहार शिक्षा परियोजना के लिए शैक्षणिक कार्यों का पर्यवेक्षण करने का भी अनुभव है। मुख्य रूप से इनकी रुचि पढ़ने और लिखने में है।

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