Vishnu Prabhakar Ki Lokpriya Kahaniyan: Vishnu Prabhakar Ki Lokpriya Kahaniyan: Popular Stories by Renowned Author Vishnu Prabhakar

· Prabhat Prakashan
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सन् 1931 में जब विष्णु प्रभाकर 19 वर्ष के थे; उनकी पहली कहानी ‘दिवाली की रात’ लाहौर से निकलनेवाले ‘मिलाप’ पत्र में छपी। उसके बाद जो सिलसिला शुरू हुआ; वह 76 वर्ष सन् 2007 तक निर्बाध चलता रहा। उनके लेखन में विचार नारों की तरह शोरगुल में नहीं बदलता। मनुष्य मन की जटिल व्यवस्था हो या अमानवीय असामाजिक परिस्थितियाँ; विष्णु प्रभाकर उस मनुष्य की चिंता करते हैं; जिसे सताया जा रहा है और फिर भी निरंतर मुक्ति संग्राम में जुटा है। उनकी कथावस्तु में प्रेम; मानवीय संवेदना; पारिवारिक संबंध; अंधविश्वास जैसे विषय मौजूद हैं।
विष्णुजी की अधिक रुचि मनुष्य में रही। उन्होंने उसके जीवन के झूठ और पाखंड को देखा; उसके छोटे-से-छोटे क्रियाकलाप को बारीकी से परखा; उसके अंतर में चलते द्वंद्व को समझा; अपने दीर्घ अनुभव के साँचे में ढाला और करुणा के अंतर्निहित भावों को शब्द दिए। वे अपने प्रारंभिक त्रासद जीवन के प्रभाव से शायद कभी मुक्त न हो सके। उनका विपुल साहित्य उनके स्वयं के जीवन का ही प्रतिरूप है; जो सरल; सात्त्विक; अकृत्रिम व मानवीय मूल्यों को समर्पित है। मित्र; हमदर्द; सलाहकार; सहभागी और सहयात्री—विष्णु प्रभाकर अनेक रूपों में अपने कथा-पात्रों के साथ जीते हैं। यही जीना उनकी रचनाओं को रोचक बना देता है।

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About the author

जन्म : 21 जून, 1912 को मीरापुर, जिला मुजफ्फरनगर (उ.प्र.) में। शिक्षा : चंदूलाल एंग्लोवैदिक हाई स्कूल, हिसार से मैट्रिक, तत्पश्चात् नौकरी करते हुए पंजाब विश्वविद्यालय से भूषण, प्राज्ञ, विशारद, प्रभाकर आदि की हिंदीसंस्कृत परीक्षाएँ उत्तीर्ण कीं। फिर यहीं से बी.ए. भी किया। रचनासंसार : कहानी, उपन्यास, नाटक, जीवनी, निबंध, एकांकी, यात्रावृत्तांत आदि प्रमुख विधाओं में लगभग सौ कृतियाँ हिंदी को दीं हैं। सम्मानपुरस्कार : ‘आवारा मसीहा’ सर्वाधिक चर्चित जीवनी है, जिस पर उन्हें ‘पाब्लो नेरूदा सम्मान’, ‘सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार’ सदृश अनेक देशीविदेशी पुरस्कार मिले। प्रसिद्ध नाटक ‘सत्ता के आरपार’ पर उन्हें भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा ‘मूर्तिदेवी पुरस्कार’ मिला तथा हिंदी अकादमी, दिल्ली द्वारा ‘शलाका सम्मान’ भी। उन्हें उ.प्र. हिंदी संस्थान के ‘गांधी पुरस्कार’ तथा राजभाषा विभाग, बिहार के ‘डॉ. राजेंद्र प्रसाद शिखर सम्मान’ से भी सम्मानित किया गया। देशविदेश की अनेक यात्राएँ करनेवाले विष्णुजी जीवनपर्यंत पूर्णकालिक मसिजीवी रचनाकार के रूप में साहित्यसाधनारत रहे। स्मृतिशेष : 12 अप्रैल, 2009।

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