भारतीय चिंतनधारा के विकास में ॠग्वेदकाल के बाद षड्दर्शनों का अत्यंत महत्व है। जब हम परंपरा की बात करते हैं तो वेद, ब्रह्मसूत्र उपनिषद् और गीता जैसे ग्रंथोंसे ही हमारा तात्पर्य होता है। क्योंकि परंपरा का अर्थ है ‘जो हमारे पवित्र-आर्यग्रंथों में लिखा है। अत पूरी भारतीय परंरा को जानने के लिए दर्शनों का अध्ययन आवश्यक हो जाता है। इसीलिए हमने संक्षेप में और सरल भाषा में विभिन्न दर्शनों की व्याख्या प्रस्तुत की है। भारतीय मनीषियों के अनुसार दर्शन मनुष्यकी मूल उत्पत्ति और उसकी समस्याओंकी, प्रकृति एवं ब्रह्माण्ड की व्याख्या करते हुए उसके काव्य को व्यक्त करता है। इस तरह विचार करने पर दर्शन और दर्शन का इतिहास बनता है। भारत में इतिहास बनने की प्रक्रिया में ही षड्दर्शनों का आविर्भाव हुआ अर्थात वेदों के बाद के चिंतनमें सांख्य, वैशेषिक, योग, मीमांसा, न्याय और वेदांत दर्शनों का स्वररूप सामने आया। हमारे प्राचीन ॠषियों और चिंतकों ने ईश्वर और जगत् का संबंध जानने में उनकी व्याख्या में दर्शन का विकास किया।