आज मैं पूर्ण निरहंकारिता के साथ यह बात कह सकता हूँ कि विधि के हाथों जैसे आज की कहानी कल लिखी जा चुकी थी आज वह प्रकट हुई या हो रही है, वैसे ही आने वाले कल की कहानी भी लिखी जा चुकी है। मैं स्पष्ट रूप से देख रहा हूँ कि उस विराट खेल में मेरी क्या स्थिति है। मेरी भूमिका अब एकदम स्पष्ट हो गई है। विधि के हाथों मेरा भविष्य लिखा जा चुका है। और मैं यह देखकर चकित हूँ कि अकथनीय और अकल्पनीय होने को है। मैं अपने सौभाग्य को देखकर स्तंभित हूँ। मुझ पर सद्गुरु सत्ता की महती कृपा का जो यह परिणाम है वह मुझे परमात्मा के श्री चरणों में समर्पित हो जाने के लिये प्रेरित कर रहा है- मैं समर्पित हो चुका हूँ। श्री भगवान अपनी संपूर्ण शक्ति के साथ मुझ पर प्रसन्न हैं। भगवती मेरे प्रति अनंत वात्सल्य से आपूरित हैं। अस्तित्व अपने अनंत अनंत हाथों से मेरे ऊपर आशीष वर्षा कर रहा है। मुझे भीतर बाहर से वासुदेव श्री विष्णु ने घेर लिया है। संपूर्ण संत परंपरा मेरे प्रति अपने पवित्र प्रेम की धारा को मोड़ चुकी है। युगो युगो से साधुजनों के स्नेह से मुझे नहलाया जा रहा है।
यह सब देख देख कर मैं परमात्मा सतगुरु सत्ता को स्मरण कर कर के कृत कृत हो रहा हूँ। मैं परम आनंद में हूँ, मैं विह्वल हूँ, मैं और वह एक दूसरे में समा गये हैं- मैं क्या-क्या कहूं- कैसे व्यक्त करूं, कितना कहूं- मैं कह नहीं सकता। सोचता हूँ- इसे रहस्य ही रहने दूं फिर सोचता हूँ- नहीं कह दूं।
स्वामी जी:- मैं यह जान गया हूँ कि एक रहस्यपूर्ण सत्ता अस्तिवान है- शायद वही अस्तित्व है। वह सत्ता चैतन्य है- परम संवेदनशील है। वह सत्ता परम स्वतंत्र है और वह शक्ति संपन्न है। यह मैं सद्गुरू कृपा से कुछेक रहस्यपूर्ण अनुभवों से जान पाया। उस सत्ता का कोई आदि-अंत नहीं, कोई ओर-छोर नहीं। उसे मैंने सर्वज्ञ, शक्तिमान और सर्वव्यापक जाना है।