जब हम खुद की पहचान करते हैं तो यह जरूरी नहीं कि वहां हम मिल ही जाएं। क्योंकि वहां सिर्फ हम नहीं होते और भी बहुत कुछ होता है, बहुत लोग होते हैं। और कभी-कभार तो सब मिल जाते हैं, बस हम ही नहीं मिलते, इसलिए खुद में खुद को ढूंढ़ना और पहचानना एक कला भी है और जरूरी भी है। और रहा सवाल दूसरे का, जिसे हम दूसरा कहते हैं, वह दूसरा केवल बाहर ही हो यह जरूरी नहीं, हमारे अंदर भी होता है। इसलिए दूसरे को पहचाना भी एक कला है। सच तो यह है कि इसे पहचानना भी एक कला है। कैसे पहचाने स्वयं को और दूसरों को? जानिए इस पुस्तक से।