साहित्य में ज्योतिष के सन्दर्भ, दृष्टिकोण और व्यावहारिकता का एक नया और लगभग अछूता-सा आयाम लेकर उतरे हैं युवा लेखक पंकज कौरव वह जानते हैं कि उनका इरादा किसी तरह के छद्म को सघन करना नहीं है। वह तो चाहते हैं कि हिन्दुस्तान के हज़ारों-लाखों की तादाद में जो युवा मायानगरी की तरफ़ लपके चले आ रहे हैं वे यहाँ अपने श्रम और प्रतिभा के दम पर ही अपना होना-बनना सिद्ध करें, न कि ज्योतिष और ग्रहों की मोहक लेकिन अन्धी गलियों में सरक जायें। पंकज फिलहाल ख़ुद को ज़िन्दगी के समानान्तर खड़ी और ज़िन्दगी को बहलाती-फुसलाती इसी मरीचिका पर केन्द्रित रखना चाहते हैं। नयी वाली हिन्दी तो नहीं, उसके आसपास की भाषा और शब्दावली के प्रयोग से उन्होंने परहेज़ नहीं किया है। इसका मकसद भी लाखों-लाख लोगों तक पहुँचने की सदिच्छा में निहित है। मौजूदा उपन्यास 'शनि' कॉरपोरेट जगत् की चकाचौंध, मारामारी, अवसाद और स्याह-रंगीन स्वप्नों-दुःस्वप्ने के बीच जीते-मरते युवाओं के संघर्ष का मार्मिक और खरा आख्यान भर है। पंकज के पास दावे नहीं विनम्र इरादे हैं जिनके आलोक में इस रचना को पढ़ा-समझा जाये, ऐसी अपेक्षा वह पाठकों से करते हैं। युवाओं के लिए, युवाओं के बारे में एक युवा का सरोकार है 'शनि' इस शनि से भागें नहीं, इससे मुठभेड़ करें और अपने जीवन की पेचीदगियों को सहज-सरल करने का प्रयास करें। -धीरेन्द्र अस्थाना