सामवेद
‘सामवेद’ को ‘ट्टग्वेद’ का पूरक कहा जाता है। इस रूप में इस की महत्ता ‘ट्टग्वेद’ से किसी भी तरह कम नहीं मानी जा सकती- इसीलिए यह वेदत्रयी (ट्टव्फ़, यजु और सामवेद) में गिना जाता है।
गीता में उपदेशक कृष्ण ने ‘वेदानां सामवेदोस्मि’ कह कर सामवेद की विशिष्टता की ओर ही संकेत किया है।
सामवेद का प्रस्तुत अनुवाद सायण भाष्य पर आधारित है, क्योंकि सायणाचार्य ने वैदिक ट्टचाओं को समझने के लिए परंपरागत ज्ञान, तर्क एवं मनन का पूरापूरा सहारा लिया था।
इस से भी बड़ी बात यह है कि उन्होंने अन्य आचार्यों की तरह सामवेद की ट्टचाओं को किसी ‘विशेष वाद’ का चश्मा पहन कर नहीं देखा है, बल्कि उन के प्रसंगानुसार मानव जीवन से संबंधित अर्थ ही दिए हैं।