Vinayak Damodar Savarkar: Bestseller Book by Raghuvendra Tanwar: Vinayak Damodar Savarkar

· Prabhat Prakashan
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विनायक दामोदर सावरकर एक ऐसा नाम है, जो भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन के इतिहास में सबसे अलग है। उन्हें दो-दो बार आजीवन निर्वासन की सजा, अंडमान द्वीप की कुख्यात जेल में दस वर्षों से भी अधिक समय तक कठोरतम कारावास की यातना झेलनी पड़ी। वे एक महान् बुद्धिजीवी थे; उनकी कुछ रचनाएँ अंग्रेजी और मराठी भाषा की उत्कृष्ट कृतियाँ हैं। उनकी पुस्तक ‘द इंडियन वार ऑफ इंडिपेंडेंस : 1857’ ने पूरे विश्व को भारत के स्वतंत्रता के उद्देश्य के प्रति जाग्रत् किया। वे इस बात की चेतावनी देनेवाले पहले व्यक्ति थे कि देश की जनसंख्या के एक वर्ग के प्रति तुष्टीकरण की नीति देश को बँटवारे की ओर ले जा सकती है। सावरकर के लिए ‘मातृभूमि’ की एकता और अखंडता सर्वोच्च थी। सन् 1947 में धर्म के आधार पर भारत का विभाजन हो गया। इसे हिंदुओं की मातृभूमि या हिंदुस्तान कहना कहाँ तक गलत था! वे कहते थे कि क्या हिंदू बहुसंख्यक नहीं थे? इस बात को समझने के लिए उनके लेखों को पढ़ना पड़ेगा कि वे केवल हिंदुओं के लिए ही ‘हिंदुस्तान’ की कल्पना नहीं करते थे। इसके विपरीत वे तो अल्पसंख्यकों के धर्म, संस्कृति और भाषा के संरक्षण की कामना भी करते थे।

यह पुस्तक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक वीर सावरकर के जीवन और योगदान का एक संक्षिप्त परिचय मात्र है।

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4.6
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Gopal Garole
May 25, 2018
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About the author

शिक्षा : एम.ए. (इतिहास) में प्रथम स्थान व सामाजिक विज्ञान संकाय में सर्वाधिक अंक प्रतिशत हेतु सम्मानित। यू.जी.सी. के राष्ट्रीय फैलो (रिसर्च अवार्डी 2002-2005); अध्यक्ष, पंजाब इतिहास कांग्रेस (मॉडर्न 2001); प्रथम अध्यक्ष, भारतीय इतिहास कांग्रेस (समकालिक 2008) हैं। प्रकाशन : रिपोर्टिंग द पार्टिशन ऑफ पंजाब : प्रेस, पब्लिक ऐंड अदर ओपिनियन 1947। इस अध्ययन की समीक्षा अनेक विद्वानों द्वारा भारत, यू.के., यू.एस.ए. तथा कनाडा के विभिन्न महत्त्वपूर्ण जर्नलों के लिए की गई। उनकी पुस्तक ‘पॉलिटिक्स ऑफ शेयरिंग पावर : द पंजाब यूनियनिस्ट पार्टी 1923-1947’ को विभाजन के पूर्व पंजाब में विद्यमान राजनैतिक व्यवस्था पर एक महत्त्वपूर्ण एवं सर्वस्वीकार्य शोध के रूप में मान्यता दी जाती है। फ्रैंकली स्पीकिंग : ऐसे ऐंड ओपिनियंस, 1990 के दशक में प्रमुख राष्ट्रीय समाचार-पत्रों में प्रकाशित उनके लेखों एवं विचारों का संकलन है। उनके निरीक्षण में 14 शोधार्थी पी-एच.डी. कर चुके हैं। ‘द एसेसिनेशन ऑफ महात्मा गांधी ऐंड द पॉलिटिक्स ऑफ बैनिंग द राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ नामक पुस्तक का प्रकाशन अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना, नई दिल्ली द्वारा 2015 में किया गया। ‘द कश्मीर डिस्प्यूट 1947-48 : ए स्टडी ऑफ अरली कंटेम्पैररी व्यूज ऐंड रिएक्शन’ का कार्य पूर्ण। प्रो. तंवर कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता शैक्षणिक, अधिष्ठाता सामाजिक विज्ञान संकाय एवं कुलसचिव के पदों पर आसीन रहे हैं। उनका विश्वविद्यालय का शैक्षणिक अनुभव लगभग 38 वर्षों का है। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र में प्रोफेसर एमिरेटस के पद पर कार्यरत हैं।

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