Powaron Ka Itihas

· Nachiket Prakashan
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About this ebook

  पोवारों का इतिहास (History of the Powar Community)यह ग्रंथ मौलिक (Basic)और व्यावहारिक (Applied) इन दोनों प्रकार के संशोधनों पर आधारित होने से बहुमूल्य ग्रंथ है। यह ग्रंथ मौलिक संशोधन(Fundamental Reasearch) पर आधारित होने के कारण इसमें लगभग 1700 में मालवा-राजस्थान से‌ वैनगंगा अंचल में हुए स्थानांतरण के कारणों की तथा पोवार समुदाय के सामाजिक, भाषिक, सांस्कृतिक, धार्मिक तथा आर्थिक आदि.‌विविध पहलुओं की विश्वसनीय, प्रामाणिक और वैध जानकारी दी गई है। उसी प्रकार यह ग्रन्थ व्यावहारिक संशोधन (Applied Reasearch) पर अधिष्ठित होने के कारण इसके अध्ययन से वर्तमान पोवार समुदाय में व्याप्त समस्याओं तथा उनके निराकरण के उपायों का भी बोध होता है।‌

   तात्पर्य, इस ग्रंथ में पोवार समुदाय के चित्र और चरित्र को बहुत गहराई से समझने और समझाने का कार्य किया गया है, इसलिए यह ग्रंथ जिज्ञासु पाठकों तथा समाज नवनिर्माण की आकांक्षा रखने वाले सुधिजनों के लिए समान रुप से महत्वपूर्ण और पथप्रदर्शक है।

Ratings and reviews

5.0
18 reviews
Shraddha
January 8, 2024
"Powaron Ka Itihas" appears to be a historical book exploring the brief knowledge of the Powar samaj. The narrative skillfully delves into the rich tapestry of their history, providing readers with a captivating journey through the annals of time. The meticulous research and engaging storytelling make it a commendable read for those intrigued by the historical narratives of India."
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Powari Bhasha Vishva . Navi Kranti
May 4, 2023
This book is the pride of the Powar Community. The book is based on the reliable, authentic and valid fundamental research. पोवार समुदाय को उसके ही कुछ तथाकथित कर्णधारों द्वारा, उसके तथा उसकी मातृभाषा के सही नाम के संबंध में दिग्भ्रमित (Confused)किया गया था। किन्तु इस ग्रंथ में लेखक ने ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर सिद्ध किया है कि 36कुलीय पोवार समाज का मूल ऐतिहासिक नाम पोवार (Powar) ‌तथा इसकी मातृभाषा का सही नाम पोवारी(Powari) है। इस संशोधित तथ्य के कारण पोवार समाज की पहचान अजर-अमर हो गई। इस कारण पोवार समाज में खुशी का माहौल है। इस ग्रंथ में लेखक ने प्रामाणिकता से पोवारों के इतिहास (1658-2022)को निरुपित किया है। यह ग्रंथ सामाजिक घटनाक्रमों पर आधारित होने से समाज की समस्याओं से अवगत कराता है और उज्ज्वल ‌भविष्य साकार करने हेतु नई दिशा भी दिग्दर्शित करता है। इस ग्रंथ के अध्ययन से इस समाज की युवाशक्ति मे उसका सोया हुआ स्वाभिमान जागृत होगा। पोवार समाज की स्वतंत्र पहचान अनंतकाल तक सुरक्षित रहेगी। यह ग्रंथ नई पीढ़ी के लिए समाज का सही इतिहास जानने के लिए वैध दस्तावेज के समान अमूल्य धरोहर है।
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Aditya Patle
April 19, 2023
This is a high level book.The writer is really a best historian अब तक पोवारों के इतिहास का अभाव था। इस ग्रंथ के द्वारा इस अभाव की परिपूर्णता हुई हैं। ग्रंथ के लिए हमारा क्षत्रिय पोवार समाज आपका सदैव ऋणी रहेगा।
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About the author

पोवारों का इतिहास (1658-2022) यह संशोधनात्मक ग्रंथ इतिहासकार ओ. सी. पटले, आमगांव (महाराष्ट्र) इनकी लेखनी से साकार हुआ है। प्रस्तुत लेखक इतिहास के प्राध्यापक थे । उन्हें सिनियर काॅलेज में इतिहास और राजनीति शास्त्र इन दोनों विषयों के अध्यापन का अनुभव है। उन्हें शिक्षण महाविद्यालय ( बी.एड्.) में शैक्षणिक दर्शन शास्त्र (Educational Philosophy) पढ़ाने का भी प्रदीर्घ अनुभव है l

  लेखक को शैक्षणिक, सामाजिक और ऐतिहासिक संशोधन का अनुभव होने के साथ -साथ वें एक उत्तम साहित्यिक भी है। उनके विविध विषयों पर संशोधनात्मक लेख भारतवर्ष की विविध प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित होते आये हैं। वें प्रतिबिंब, भवभूति अब गीतों में, वीर राजे चिमना बहादुर, राजाभोज महाकाव्य , पोवारी भाषा संवर्धन: मौलिक सिद्धांत व व्यवहार, पोवारों का इतिहास आदि.महत्वपूर्ण ग्रंथों के लेखक है।

    प्रस्तुत लेखक भवभूति रिसर्च अकॅडमि, आमगांव के अध्यक्ष, श्रीरामचरितमानस संस्था, नागपुर के अध्यक्ष, वीर राजे चिमना बहादुर फाउंडेशन, गोंदिया के सक्रिय सदस्य तथा अखिल भारतीय क्षत्रिय पोवार (पंवार) महासंघ के संरक्षक है।

   ‌‌ वें पोवार समाज में भाषिक, सांस्कृतिक, वैचारिक क्रांति लाने के लिए 2018 से निरंतर प्रयत्नशील है। उनके प्रयासों एवं युवाशक्ति के सहयोग से इस कार्य में उन्हें उल्लेखनीय सफलता प्राप्त हुई है। उनकी सिद्ध लेखनी से यह ग्रंथ साकार हुआ है। यह ग्रंथ ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित, समझने में आसान, रोचक एवं पथप्रदर्शक है। प्रत्येक समुदाय में इस प्रकार के महत्वपूर्ण इतिहास ग्रंथों का सृजन होने से समाजोत्थान में सहायक साबित होंगे।

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