मेरे लिए इससे बढ़कर आनंद की बात कुछ और नहीं हो सकती कि प्रेमपाल शर्माजी के संस्मरणों की पुस्तक छप रही है। इन सुखद क्षणों में अपने अंतर्मन के नेह और सद्भावनाओं के साथ मैं यही दुआ कर सकता हूँ कि वे लिखें, निरंतर लिखें, और खूब अच्छा लिखें, जिससे दूसरों के दिलों में भी उजास पैदा हो, और यह दुनिया थोड़ी सी ज्यादा उजली और सुंदर हो जाए !