Pratyaksh : Mahasamar - 7

· Vani Prakashan
3.6
5 izibuyekezo
I-Ebook
504
Amakhasi
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Mayelana nale ebook

नरेन्द्र कोहली के महाभारत की कथा पर आश्रित उपन्यास ‘महासमर’ का यह सातवाँ खण्ड है, जिसमें युद्ध के उद्योग और फिर युद्ध के प्रथम चरण अर्थात् भीष्म पर्व की कथा है। कथा तो यही है कि पाण्डवों ने अपने सारे मित्रों से सहायता माँगी। कृष्ण से भी। पर नरेन्द्र कोहली का प्रश्न है कि जो कृष्ण आज तक युधिष्ठिर से कह रहे थे कि वे कुछ न करें, बस अनुमति दे दें तो यादव ही दुर्योधन का वध कर पाण्डवों का राज्य उन्हें प्राप्त करवा देंगे, वे कृष्ण उद्योग की भूमि उपप्लव्य से उठ कर द्वारका क्यों चले गये? पाण्डवों को उनसे सहायता माँगने के लिए द्वारका क्यों जाना पड़ा? कृष्ण ने पापी दुर्योधन को अपने परम मित्र अर्जुन के समकक्ष कैसे मान लिया? प्रश्न यह भी है कि जो कृतवर्मा, कृष्ण का समधी था, जिसने कौरवों की राजसभा से कृष्ण को सुरक्षित बाहर निकाल लाने के लिए अपनी जान लड़ा दी, वह दुर्योधन के पक्ष से युद्ध करने क्यों चला गया? ऐसा क्या हो गया कि यादवों के सर्वप्रिय नेता कृष्ण जब पाण्डवों की ओर से युद्ध में सम्मिलित होने आये तो उनके साथ न उनके भाई थे, न उनके पुत्र? कोई नहीं था कृष्ण के साथ। यादवों में इतने अकेले कैसे हो गये कृष्ण?

जिस युधिष्ठिर के राज्य के लिए यह युद्ध होना था, वह युधिष्ठिर ही युद्ध के पक्ष में नहीं था। जिस अर्जुन के बल पर पाण्डवों को यह युद्ध लड़ना था, वह अर्जुन अपना गांडीव त्याग हताश होकर बैठ गया था। उसे युद्ध नहीं करना था। जिन यादवों का सबसे बड़ा सहारा था, उन यादवों में से कोई नहीं आया लड़ने, तो महाभारत का युद्ध कौन लड़ रहा था? कृष्ण? अकेले कृष्ण? जिनके हाथ में अपना कोई शस्त्र भी नहीं था?

अर्जुन शिखंडी को सामने रख भीष्म का वध करता है अथवा पहले चरण में वह भीष्म को शिखंडी से बचाता रहा है और फिर अपने जीवन और युग से हताश भीष्म को एक क्षत्रिय की गौरवपूर्ण मृत्यु देने के लिए उनसे सहयोग करता है? कर्ण का रोष क्या था और क्या था कर्ण का धर्म? कर्ण का चरित्र? इस खण्ड में कुन्ती और कर्ण का प्रत्यक्ष साक्षात्कार हुआ है। और कुन्ती ने प्रत्यक्ष किया है कर्ण की महानता को। बताया है उसे कि वह क्या कर रहा है, क्या करता रहा है। बहुत कुछ प्रत्यक्ष हुआ है, महासमर के इस सातवें खण्ड ‘प्रत्यक्ष’ में।...किन्तु सबसे अधिक प्रत्यक्ष हुए हैं नायकों के नायक श्रीकृष्ण। लगता है कि एक बार कृष्ण प्रकट हो जाएँ तो अन्य प्रत्येक पात्र उनके सम्मुख वामन हो जाता है। और इसी खण्ड में है कृष्ण की गीता...भगवद्गीता...। एक उपन्यास में गीता, जो गीता भी है और उपन्यास भी। इस खण्ड को पढ़ने के पश्चात् निश्चित रूप से आप अनुभव करेंगे कि आप कृष्ण को बहुत जानते थे, पर फिर भी इतना तो नहीं ही जानते थे।...

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Mayelana nomlobi

नरेन्द्र कोहली का जन्म 6 जनवरी 1940, सियालकोट ( अब पाकिस्तान ) में हुआ । दिल्ली विश्वविद्यालय से 1963 में एम.ए. और 1970 में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की । शुरू में पीजीडीएवी कॉलेज में कार्यरत फिर 1965 से मोतीलाल नेहरू कॉलेज में । बचपन से ही लेखन की ओर रुझान और प्रकाशन किंतु नियमित रूप से 1960 से लेखन । 1995 में सेवानिवृत्त होने के बाद पूर्ण कालिक स्वतंत्र लेखन। कहानी¸ उपन्यास¸ नाटक और व्यंग्य सभी विधाओं में अभी तक उनकी लगभग सौ पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। उनकी जैसी प्रयोगशीलता¸ विविधता और प्रखरता कहीं और देखने को नहीं मिलती। उन्होंने इतिहास और पुराण की कहानियों को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में देखा है और बेहतरीन रचनाएँ लिखी हैं। महाभारत की कथा को अपने उपन्यास "महासमर" में समाहित किया है । सन 1988 में महासमर का प्रथम संस्करण 'बंधन' वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हुआ था । महासमर प्रकाशन के दो दशक पूरे होने पर इसका भव्य संस्करण नौ खण्डों में प्रकाशित किया है । प्रत्येक भाग महाभारत की घटनाओं की समुचित व्याख्या करता है। इससे पहले महासमर आठ खण्डों में ( बंधन, अधिकार, कर्म, धर्म, अंतराल,प्रच्छन्न, प्रत्यक्ष, निर्बन्ध) था, इसके बाद वर्ष 2010 में भव्य संस्करण के अवसर पर महासमर आनुषंगिक (खंड-नौ) प्रकाशित हुआ । महासमर भव्य संस्करण के अंतर्गत ' नरेंद्र कोहली के उपन्यास (बंधन, अधिकार, कर्म, धर्म, अंतराल,प्रच्छन्न, प्रत्यक्ष, निर्बन्ध,आनुषंगिक) प्रकाशित हैं । महासमर में 'मत्स्यगन्धा', 'सैरंध्री' और 'हिडिम्बा' के बारे में वर्णन है, लेकिन स्त्री के त्याग को हमारा पुरुष समाज भूल जाता है।जरूरत है पौराणिक कहानियों को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में समझा जाये। इसी महासमर के अंतर्गततीन उपन्यास 'मत्स्यगन्धा', 'सैरंध्री' और 'हिडिम्बा' हैं जो स्त्री वैमर्शिक दृष्टिकोण से लिखे गये हैं ।

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