पलामू क्रांतिकारियों की धरती रही है। राजा मेदिनी राय ने मुगलों के खिलाफ संघर्ष किया था, तो सन् 1857 की क्रांति में नीलांबर-पीतांबर भाइयों ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे। सन् 1920 में शुरू हुए असहयोग आंदोलन से लेकर देश की आजादी के लिए हुए सन् 1942 के ‘अंग्रेजो, भारत छोड़ो’ आंदोलन तक में यहाँ के क्रांतिकारियों का योगदान देश के अन्य क्रांतिकारियों से कम नहीं था। इतना होने के बाद भी उनकी गाथाएँ कलमबद्ध नहीं हुईं।
‘पलामू के क्रांतिकारी’ पुस्तक में काकोरी कांड के नायकों में से एक अशफाक उल्लाह खान के यहाँ नौकरी करने, गांधीजी, राजेंद्र बाबू, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, जयप्रकाश नारायण सरीखे महानायकों के वर्तमान के मेदिनीनगर और पूर्व के डालटनगंज आने की जानकारी दी गई है। संविधान सभा के सदस्य रहे यदुवंश सहाय और अमिय कुमार घोष के अलावा चंद्रशेखर आजाद के सहयोगी रहे गणेश वर्मा की कहानी भी इसमें है। अगस्त क्रांति के दौरान पूरे देश में सगे भाइयों की छह जोडि़यों की गिरफ्तारी संभवतः पलामू जिले में ही हुई थी। ये भाई थे—यदुवंश सहाय-उमेश्वरी चरण, गणेश प्रसाद वर्मा-नंदकिशोर प्रसाद वर्मा, नीलकंठ सहाय-ऋषि कुमार सहाय, तीरथ प्रकाश भसीन-वेद प्रकाश भसीन, हजारी लाल साह-नारायण लाल साह और लक्ष्मी प्रसाद-गौरीशंकर गुहृश्वता। वाराणसी में फाँसी पर चढ़ने वाले शहीद स्वामी सत्यानंद और गोवा मुक्ति आंदोलन में शामिल रहे राम प्रसाद आजाद की दास्तान भी इसमें है।