Bharatiyata Ki Ore: Bestseller Book by Pavan K Varma: Bharatiyata Ki Ore

· Prabhat Prakashan
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उभरती हुई विश्व-ताकत होने के दावों के बावजूद सच्चाई यही है कि हम एंग्लो-सेक्शन दुनिया की आलोचना और तारीफ, दोनों के प्रति बेहद संवेदनशील हैं और उसकी स्वीकृति पाने के लिए लालायित हैं। आजाद भारत के गृह मंत्रालय के नॉर्थ ब्लॉक स्थित मुख्यालय के बाहर औपनिवेशिक शासकों द्वारा अंग्रेजी में लिखी इन पंक्तियों को कोई भी पढ़ सकता है—

Liberty will not descend to a people,

a people must raise themselves to liberty.

महज कुछ दशक पहले तक विश्व भिन्न-भिन्न साम्राज्यों में बँटा हुआ था। बीसवीं सदी के मध्य में इन साम्राज्यों से स्वाधीन देशों का जन्म हुआ, पर उनकी राजनीतिक स्वतंत्रता के बावजूद भारत जैसे उपनिवेशवाद के शिकार रहे देशों के लिए सांस्कृतिक स्वतंत्रता एक स्वप्न जैसी रह गई है।

प्रख्यात लेखक पवन वर्मा ने इस महत्त्वपूर्ण पुस्तक में भारतीयों की मानसिक बनावट पर साम्राज्य के प्रभावों का विश्लेषण किया है। आधुनिक भारतीय इतिहास, समकालीन घटनाओं और निजी अनुभवों के आधार पर वे इस बात की पड़ताल करते हैं कि किस प्रकार उपनिवेशवाद से जुड़ी चीजों का असर आज भी हमारी रोजमर्रा की जिंदगी पर छाया हुआ है।

पूरे भावावेग, अंतर्दृष्टि और अकाट्य तर्कशक्ति के साथ पवन वर्मा दिखाते हैं कि भारत और गुलाम रह चुके अन्य देश सही मायनों में तभी स्वतंत्र हो पाएँगे और तभी विश्व का नेतृत्व करने की हालत में हो पाएँगे, जब तक कि वे अपनी सांस्कृतिक पहचान को फिर से हासिल नहीं कर लेते।

About the author

पवन वर्मा दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज से इतिहास में स्नातक होने के साथ ही दिल्ली विश्‍वविद्यालय से विधि में भी स्नातक हैं। भारतीय विदेश सेवा के सदस्य के रूप में वे मॉस्को, संयुक्‍त राष्‍ट्र संघ के भारतीय अभियान में न्यूयॉर्क, लंदन के नेहरू सेंटर में बतौर निदेशक और भारत के उच्चायुक्‍त के रूप में साइप्रस में अपनी सेवाएँ प्रदान कर चुके हैं। वर्तमान में भूटान में भारत के राजदूत हैं। प्रमुख पुस्तकें हैं—गालिब : द मैन, द टाइम्स; कृष्णा : द प्लेफुल डिवाइन; ये सभी पुस्तकें पेंगुइन से प्रकाशित हैं। • वैभव सिंह हिंदी के बहुचर्चित युवा आलोचक हैं और जे.एन.यू., नई दिल्ली से पी-एच.डी. की है। वर्ष 2007 में इतिहास और राष्‍ट्रवाद नामक पहली पुस्तक प्रकाशित हुई। टेरी ईगलटन की किताब ‘मार्क्सिज्म एंड लिटरेरी क्रिटिसिज्म’ का हिंदी अनुवाद भी किया है। हिंदी की प्रतिष्‍ठ‌ित पत्र-पत्रिकाओं में लेख प्रकाशित होते रहते हैं। कुछ वर्षों तक पत्रकारिता में सक्रिय रहने के बाद संप्रति दिल्ली विश्‍वविद्यालय के हिंदू कॉलेज में अध्यापन कार्य में रत।

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