कई दशकों से अपने मुल्क और मुल्क की सरहदों को पार कर ग़ज़ल को हिंदुस्तानी तहज़ीब में ढालकर लोकप्रियता के शिखर पर पहुँचाने वाले शायर का नाम है सैयद मुनव्वर अली राना. अदब की अंजुमन में इस शायर को सिर्फ़ मुनव्वर राना के नाम से जाना और पहचाना जाता है. इनकी शायरी की भाषा न हिंदी है न उर्दू, बल्कि हिंदूस्तानी है. मुनव्वर आधुनिक दौर के प्रगतिशील शायर हैं. वे जिस संजीदगी से कागज़ पर अपनी संवेदनाओं को उकेरते हैं उतनी ही संजीदगी और ज़िम्मेदारी से मंच पर अपने कलाम पेश करते हैं.
हिंदी उर्दू के काव्य मंच हों या पत्र-पत्रिकाओं का संसार, उनकी मौजूदगी अभिभूत कर देती है.