Madaripur Juction

· Vani Prakashan
5.0
3 கருத்துகள்
மின்புத்தகம்
284
பக்கங்கள்
ரேட்டிங்குகளும் கருத்துகளும் சரிபார்க்கப்படுவதில்லை மேலும் அறிக

இந்த மின்புத்தகத்தைப் பற்றி

 मदारीपुर गाँव उत्तर प्रदेश के नक्शे में ढूँढें तो यह शायद आपको कहीं नहीं मिलेगा, लेकिन निश्चित रूप से यह गोरखपुर जिले के ब्रह्मपुर नाम के गाँव के आस-पास के हजारों-लाखों गाँवों से ली गई विश्वसनीय छवियों से बना एक बड़ा गाँव है जो भूगोल से गायब होकर उपन्यास में समा गया है।

उल्लेखनीय है कि ब्रह्मपुर वह स्थान है जहाँ उपन्यासकार बालेन्दु द्विवेदी का बचपन बीता।


मदारीपुर में रहने वाले छोटे-बड़े लोग अपने गाँव को अपनी संपूर्ण दुनिया मानते हैं। इसी सोच के कारण यह गाँव संकोच कर गया और कस्बा होते-होते रह गया। गाँव के केंद्र में ‘पट्टी’ है जहाँ ऊँची जाति के लोग रहते हैं। इस पट्टी के चारों ओर झोपड़पट्टियाँ हैं जिनमें तथाकथित निचली जातियों के पिछड़े लोग रहते हैं। यहाँ कभी रहा होगा ऊँची जाति के लोगों के वर्चस्व का जलवा! लेकिन आपसी जलन, कुंठाओं, झगड़ों, दुरभिसंधियों और अंतर्कलहों के रहते धीरे-धीरे अंततः पट्टी के इस ऊँचे वैभव का क्षरण हुआ। संभ्रांत लोग लबादे ओढ़कर झूठ, फरेब, लिप्सा और मक्कारी के वशीभूत होकर आपस में लड़ते रहे, लड़ाते रहे और झूठी शान के लिए नैतिक पतन के किसी भी बिंदु तक गिरने के लिए तैयार थे। पट्टी में से कई तो इतने ख़तरनाक थे कि किसी बिल्ली का रास्ता काट जाएँ तो बिल्ली डर जाए और डरपोक इतने कि बिल्ली रास्ता काट जाए तो तीन दिन घर से बाहर न निकलें। फिर निचली कही जाने वाली बिरादरियों के लोग अपने अधिकारों के लिए धीरे-धीरे जागरूक हो रहे थे और समझ रहे थे - पट्टी की चालपट्टी..!


एक लंबे अंतराल के बाद मुझे एक ऐसा उपन्यास पढ़ने को मिला जिसमें करुणा की आधारशिला पर व्यंग्य से ओतप्रोत और सहज हास्य से लबालब पठनीय कलेवर है। कथ्य का वक्रोक्तिपरक चित्रण और भाषा का नव-नवोन्मेष, ऐसी दो गतिमान गाड़ियाँ हैं जो मदारीपुर के जंक्शन पर रुकती हैं। जंक्शन के प्लेटफार्म पर लोक-तत्वों के बड़े-बड़े गट्ठर हैं जो मदारीपुर उपन्यास में चढ़ने को तैयार हैं। इसमे स्वयं को तीसमारखाँ समझने वाले लोगों का भोलापन भी है और सौम्य दिखने वाले नेताओं का भालापन भी।


प्रथमदृष्टया और कुल मिलाकर ‘मदारीपुर-जंक्शन’ अत्यंत पठनीय उपन्यास बन पड़ा है। लगता ही नहीं कि यह किसी उपन्यासकार का पहला उपन्यास है।

बधाई मेरे भाई!

- अशोक चक्रधर

மதிப்பீடுகளும் மதிப்புரைகளும்

5.0
3 கருத்துகள்

ஆசிரியர் குறிப்பு

 लेंदु द्विवेदी

जन्म: 1 दिसंबर, 1975; उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के ब्रह्मपुर गाँव में। वहीं से प्रारंभिक शिक्षा ली। फिर कभी असहयोग आंदोलन के दौरान चर्चित रहे ऐतिहासिक स्थल चौरी-चौरा से माध्यमिक शिक्षा ग्रहण की। तदनंतर उच्च शिक्षा हेतु इलाहाबाद गए। वहीं से स्नातक की शिक्षा और दर्शनशास्त्र में एम.ए. की डिग्री हासिल की। बाद में हिंदी साहित्य के प्रति अप्रतिम लगाव के चलते ‘राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय’ से हिंदी साहित्य में भी एम.ए. किया। जीवन के यथार्थ और कटु अनुभवों ने लेखन के लिए प्रेरित किया। सम्प्रति उ.प्र. सरकार में जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी के पद पर सेवारत।




இந்த மின்புத்தகத்தை மதிப்பிடுங்கள்

உங்கள் கருத்தைப் பகிரவும்.

படிப்பது குறித்த தகவல்

ஸ்மார்ட்ஃபோன்கள் மற்றும் டேப்லெட்கள்
Android மற்றும் iPad/iPhoneக்கான Google Play புக்ஸ் ஆப்ஸை நிறுவும். இது தானாகவே உங்கள் கணக்குடன் ஒத்திசைக்கும் மற்றும் எங்கிருந்தாலும் ஆன்லைனில் அல்லது ஆஃப்லைனில் படிக்க அனுமதிக்கும்.
லேப்டாப்கள் மற்றும் கம்ப்யூட்டர்கள்
Google Playயில் வாங்கிய ஆடியோ புத்தகங்களை உங்கள் கம்ப்யூட்டரின் வலை உலாவியில் கேட்கலாம்.
மின்வாசிப்பு சாதனங்கள் மற்றும் பிற சாதனங்கள்
Kobo இ-ரீடர்கள் போன்ற இ-இங்க் சாதனங்களில் படிக்க, ஃபைலைப் பதிவிறக்கி உங்கள் சாதனத்திற்கு மாற்றவும். ஆதரிக்கப்படும் இ-ரீடர்களுக்கு ஃபைல்களை மாற்ற, உதவி மையத்தின் விரிவான வழிமுறைகளைப் பின்பற்றவும்.