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सुमन केसरी... एम एम चंद्रा का पहला उपन्यास “प्रोस्तोर” इन दिनों प्रचलित अस्मितावादी मुहावरे से अलग वर्ग की दृष्टि से अपने समय के बदलाव के देखने का प्रयास है। उपन्यास ऐसे विकास की अवधारणा पर वाजिब सवाल उठाता है, जिसमें गरीब का बार बार उजड़ना ही गोया विकास का पर्याय हो गया है। विकास कुछ चुनिंदा लोगों को इतना आगे ले जाने का उपक्रम हो गया है, जहाँ से आम लोग या तो दिखाई ही नहीं पड़ते या फिर दिखते भी हैं तो कीड़े-मकौड़ों की तरह जिनका होना न होना कोई मायने नहीं रखता। महत्त्वपूर्ण प्रयास के लिए चंद्रा बधाई के पात्र हैं…
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