Lokgeet

Shivakant kushwaha
৩.৮
৮টি রিভিউ
ই-বুক
60
পৃষ্ঠা
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এই ই-বুকের বিষয়ে

हर माँ बाप का सपना होता है की उनका बच्चा कुछ बड़ा करे, और जब बात किसी छोटी जात में पैदा हुए बच्चे की हो तो माँ बाप की उम्मीदें और भी बढ़ जाती है, ये कहानी है एक छोटे से गाँव में रहने वाले गवाया की जो अपनी रोजी रोटी के लिए गाँव गाँव टहल के लोकगीत गया करता था, उसने अपने बेटे को लोकगीत नही सिखाया क्योंकि उसे लगता था ये काम पुस्तैनी न बन जाये | समय के साथ कहानी का असली किरदार भी बड़ा हुया - गिरी


गिरी को बचपन से गाने का बहुत शौक था लेकिन पिता जी की मनाही की वजह से अपनी तालीम को छुपा के रखा, उसकी मुलाकात सिमरन से होती है, सिमरन के साथ वो अपनी ज़िन्दगी का दूसरा पहलु जीता है, फिर एक दिन उसे ये पता चलता है की पिता जी की तबियत ख़राब है और उन्होंने अपनी साड़ी उम्र बस लोकगीत गाने और सुनाने में ही लगा दी, सिमरन और गिरी दोनों गिरी के पिता से मिलने के लिए गाँव के लिए रावण होते हैं, फिर कहानी एक नए मोड़ की तरफ मुडती है और गिरी अपने पिता से कहता है - "आप ये सब छोड क्यों नही देते"

"तू नही समझेगा"

गिरी अपनी माँ की तरफ उम्मीद से देखता है.....???



রেটিং ও পর্যালোচনাগুলি

৩.৮
৮টি রিভিউ

লেখক সম্পর্কে

"हर किस्से को मैं खुद में ही दोहराता हूँ,

मैं तनहा तो हूँ, पर कभी खुद को तनहा नही पता हूँ..!!"

अहिस्ता.. यारों की टोली, कुल्हड़ कॉफ़ी, मोहब्बत जिंदाबाद, सरहदे ये इश्क, लव कैन हैपन आफ्टर मैरिज टू, इतने किरदार जीने के बाद शायद मुझे इस किरदार को ज़ीने में अलग ही मजा आया, उम्मीद है ये आपको बेहद पसंद आएगी |

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