‘शिखर तक चलो’ उपन्यास वैसा नहीं है जैसा प्रायः सभी उपन्यास होते हैं। इस उपन्यास की खूबी यह है कि इसमें कहीं भी मर्यादा का उल्लंघन नहीं होता और फिर भी यह आद्योपांत रोचक व पठनीय बना रहता है। इसमें सकारात्मक चिंतन, अहिंसा, त्याग, विराग, राष्ट्रभक्ति आदि मानवीय मूल्यों को उजागर करने का एक प्रयास है। उस प्रयास की निष्पत्ति ‘शिखर तक चलो’ है। उपन्यास के नायक शिवा के साथ बँधा-बँधा पाठक न जाने कितने संसारों का रमण कर आता है। देश और काल की कोई सीमा नहीं रहती। महावीर से नक्सलवादियों तक और राजनीति, पत्रकारिता व समाज-सेवा के अनेक ज्ञात-अज्ञात पहलुओं का ऐसा मनोहारी चित्रण इस उपन्यास में हुआ है कि समाज के विभिन्न वर्गों से संबंध रखनेवाले पाठक भी इसमें अपने लिए पर्याप्त रोचक सामग्री पा सकेंगे। अणुव्रत आंदोलन का प्रतिपादन शिवा के चरित्र में इतनी चतुराई से किया गया है कि वह कहीं भी आरोपित प्रतीत नहीं होता। उलटे शिवा का आचरण ही अणुव्रत का जीवंत दस्तावेज बन जाता है। यह उपन्यास आदर्शोन्मुखी यथार्थवाद का उत्तम उदाहरण होने के साथ ही प्रेरणा देनेवाला भी है। उपन्यास को पढ़कर युवा पीढ़ी को सही दिशा का बोध होने के साथ ही उसका पथ-प्रदर्शन भी होगा। —डॉ. वेदप्रताप वैदिक