जो दरिंदा अपनी सगी भानजी की अस्मत और जिंदगी का सौदा करवा सकता है, उसके लिए किसी गैर की जिंदगी की हैसियत ही क्या हो सकती है? अपने जिगर के टुकड़े को अपने खून से सींचने वाली एक माँ अगर अपनी कोख को ही उजाड़ सकती है, तो किसी और की खुशियाँ उसके लिए क्या मायने रखती हैं?
कानून की हिफाजत करने वाला ही सब-इंस्पेक्टर जोगिंदर सिंह जैसा पुलिस वाला जब किसी बेसहारा अबला का खून करवा सकता है, तो पुलिस की वरदी पर कोई भरोसा कैसे कर सकता है? यह कहानी सिर्फ दो देशों के चरमराते न्यायिक सिस्टम की पोल खोलने के लिए ही नहीं है, बल्कि संयुक्त राष्ट्र संगठन, यानी यूएनओ की आँखें खोलने के लिए भी है। आखिर कहाँ हैं संसार के मानवाधिकारों के पैरोकार? कहाँ है उनकी मानवतावादी सोच? सोचना आप-हम सभी को है।