Jaishankar Prasad Granthawali Skandagupta Vikramaditya (Dusra Khand Natak) - जय शंकर प्रसाद ग्रंथावली स्कन्दगुप्त विक्रमादित्य (दूसरा खंड - नाटक)

· Diamond Pocket Books Pvt Ltd
4.5
2 รีวิว
eBook
115
หน้า
คะแนนและรีวิวไม่ได้รับการตรวจสอบยืนยัน  ดูข้อมูลเพิ่มเติม

เกี่ยวกับ eBook เล่มนี้

जिस समय खड़ी बोली और आधुनिक हिन्दी साहित्य किशोरावस्था में पदार्पण कर रहे थे। काशी के 'सुंघनी साहु' के प्रसिद्ध घराने में श्री जयशंकर प्रसाद का संवत् 1946 में जन्म हुआ। व्यापार में कुशल और साहित्य सेवी - आपके पिता श्री देवी प्रसाद पर लक्ष्मी की कृपा थी। इस तरह प्रसाद का पालन पोषण लक्ष्मी और सरस्वती के कृपापात्र घराने में हुआ। प्रसाद जी का बचपन अत्यन्त सुख के साथ व्यतीत हुआ। आपने अपनी माता के साथ अनेक तीर्थों की यात्राएं की। पिता और माता के दिवंगत होने पर प्रसाद जी को अपनी कॉलेज की पढ़ाई रोक देनी पड़ी और घर पर ही बड़े भाई श्री शम्भुरत्न द्वारा पढ़ाई की व्यवस्था की गई। आपकी सत्रह वर्ष की आयु में ही बड़े भाई का भी स्वर्गवास हो गया। फिर प्रसाद जी ने पारिवारिक ऋण मुक्ति के लिए सम्पत्ति का कुछ भाग बेचा। इस प्रकार आर्थिक सम्पन्नता और कठिनता के किनारों में झूलता प्रसाद का लेखकीय व्यक्तित्व समृद्धि पाता। गया। संवत् 1984 में आपने पार्थिव शरीर त्यागकर परलोक गमन किया।

การให้คะแนนและรีวิว

4.5
2 รีวิว

เกี่ยวกับผู้แต่ง

 

ให้คะแนน eBook นี้

แสดงความเห็นของคุณให้เรารับรู้

ข้อมูลในการอ่าน

สมาร์ทโฟนและแท็บเล็ต
ติดตั้งแอป Google Play Books สำหรับ Android และ iPad/iPhone แอปจะซิงค์โดยอัตโนมัติกับบัญชีของคุณ และช่วยให้คุณอ่านแบบออนไลน์หรือออฟไลน์ได้ทุกที่
แล็ปท็อปและคอมพิวเตอร์
คุณฟังหนังสือเสียงที่ซื้อจาก Google Play โดยใช้เว็บเบราว์เซอร์ในคอมพิวเตอร์ได้
eReader และอุปกรณ์อื่นๆ
หากต้องการอ่านบนอุปกรณ์ e-ink เช่น Kobo eReader คุณจะต้องดาวน์โหลดและโอนไฟล์ไปยังอุปกรณ์ของคุณ โปรดทำตามวิธีการอย่างละเอียดในศูนย์ช่วยเหลือเพื่อโอนไฟล์ไปยัง eReader ที่รองรับ

รายการอื่นๆ ที่เขียนโดย Jaishankar Prasad

eBook ที่คล้ายกัน