देश-विदेश में घूमकर गुरु नानक ने सच्चे धर्म और विचारों का प्रचार किया। बाबर को सद्बुद्धि दी तो उसने सभी कैदियों को आजाद कर दिया। मक्का में जहाँ उनके चरण घूमे, वहीं मदीना भी घूम गया। उन्होंने अपने आचरण से दरशाया कि सच्चे और सरल भक्त को ईश्वर सहज ही हर जगह मिल सकता है। अपने अंतिम कुछ समय गृहस्थ धर्म का निर्वहण करके उन्होंने अपने अनुयायियों को सद्गृहस्थ होने की सीख दी।
मानवता, साहस, बलिदान और त्याग जैसे सद्गुणों का विकास करनेवाले संत शिरोमणि गुरु नानक के प्रेरणाप्रद जीवन की गौरवगाथा है यह पुस्तक।