अमृत मंथन से कल्पतरु वृक्ष उत्पन्न हुआ जिसे इंद्र अपने साथ स्वर्ग ले आए, क्योंकि कल्पतरु सभी कामनाओं को पूर्ण कर सकता है। जहाँ कामनाएँ पूर्ण होती हैं, वही स्वर्ग है; और उसे पाने के लिए अनंत काल से संघर्ष चल रहा है। देवता और दानव आपस में युद्धरत हैं स्वर्ग पर अधिकार पाने के लिए; और पृथ्वी पर मनुष्य कोशिश में लगा है कि उसकी कामनाएँ कैसे पूर्ण होंगी?
कल्पतरु की सबको चाह है। इसके मिलने के बाद गालिब की तरह कहना नहीं पड़ेगा कि हजारों ख्वाहिशें ऐसी...क्योंकि ख्वाहिशें-कामनाएँ पूरी हो रही हैं।
वैसे भी, इंद्र इंद्रियजनित सुखों की पराकाष्ठा को निरूपित करते हैं; इसलिए उन्हें हमेशा ही तप से खतरा रहा है।
इंद्र की तरह आपने भी यही समझा है कि योग और भोग एक साथ नहीं रह सकते हैं। परंतु शक्ति इस नियम का अपवाद हैं। उन्होंने योगी शिव से विवाह कर उन्हें गृहस्थ बनाया है, सकल जगत् की कामनापूर्ति का उत्तरदायित्व लिया है, और फिर वही शक्ति क्षुधा, कामना रूप में हर प्राणी में स्थित है।
इसलिए कल्पतरु खास है। वह विश्वास दिलाता है कि जो माँगोगे, वही मिलेगा। यह विश्वास पुरुषार्थ को जीवंत, सक्रिय कर देता है। जीवन पूर्ण लगने लगता है।
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।KALPTARU is a book authored by Gurudev Nandkishore Shrimali. Unfortunately, specific details about the book's content, genre, or subject matter are not provided in the listing.
Key Aspects of the Book "KALPTARU":
Authorship: The book is authored by Gurudev Nandkishore Shrimali, suggesting that it may contain the creative or informative work of this writer.
Content Ambiguity: The listing does not provide specific details about the book's content or genre, making it challenging to determine its subject matter.
While the author's name is provided, additional biographical information about Gurudev Nandkishore Shrimali is not available in the listing.