गुरु गोविंद सिंह सिख पंथ के दसवें व अंतिम गुरु थे। उनके बाद सिख पंथ में गुरु-परंपरा ही समाप्त हो गई। वह महान् सेनानायक; वीर क्रांतिकारी; स्वतंत्रताप्रिय देशभक्त और समाज-सुधारक थे। उन्होंने देश; धर्म और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए सिखों को संगठित करके सैनिक परिवेश में ढाला। उन्होंने सिखों में नेतृत्व करने वाले ‘सरदार’ की शक्ति उत्पन्न की। इतना ही नहीं; उनके नाम के साथ सिंह की शक्ति का सूचक ‘सिंह’ शब्द लगाने का निर्देश भी दिया। इसके साथ-साथ उन्होंने सिखों के लिए पंच ‘ककार’—केश; कंघा; कड़ा; कृपाण और कच्छा—अनिवार्य कर दिया।
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