Vriddhawastha Ki Kahaniyan: Bestseller Book by Giriraj Sharan: Vriddhawastha Ki Kahaniyan

· Prabhat Prakashan
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बचपन के दिन भी क्या दिन थे.. .नभ में उड़ते तितली बन के.. ' उम्र की तीसरी सीढ़ी पर पाँव रखते ही आदमी को रह- रहकर सताने लगती है बचपन और जवानी की वह मौज-मस्ती जब वह जिंदगी की हरी- भरी वादियों में झूमता-गाता-इठलाता किसी भी तूफान-बवंडर से टकरा जाने के लिए भरपूर बल और दमखम अपने तन- बदन में महसूस करता था । पर उम्र की आखिरी दहलीज के निकट वह आज बूढ़ों की जमात में शामिल हो गया है । अनायास उसके सोचने व काम करने की शक्ति में शिथिलता आने लगी है । बैसाखियों के सहारे चलने वाला वह खुद को बहुत ही मजबूर और कमजोर इनसान समझने लगा है । उसके अपने परिवार के लोग भी उससे एक फालतू और बेकार की चीज की तरह व्यवहार करने लगे हैं । और यहीं से शुरू हो जाता है उसके व्यक्तित्व के विघटन का दौर । न केवल उसकी मानसिकता चुक जाती है वरन् वह तजुर्बों का एक ताबूत बनकर रह जाता है जिसमें उसके बेटे-बेटियाँ पोते-पोतियाँ तथाकथित आधुनिकता की कीलें ठोक देते हैं ।

बूढ़ों की मानसिकता को रूपायित करने, उनकी दुविधाओं को चित्रित करने और वर्तमान सामाजिक व्यवस्था में उनकी पीड़ा को शब्द देने का ही एक महत्वपूर्ण प्रयास इन कहानियों में है ।

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About the author

गिरिराजशरण ' जन्म : सन् 1944, संभल (उप्र.) डॉ. गिरिराज शरण की पहली पुस्तक सर 1964 में प्रकाशित हुई । तब से अनवरत साहित्य-साधना में रत आपकी लिखी एवं संपादित एक सौ के लगभग पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । आपने साहित्य की प्राय: प्रत्येक विधा में साहित्य-सृजन किया है । हिंदी गजल में आपकी सूक्ष्म और धारदार सोच को गंभीरता से स्वीकार किया गया है । कहानी, एकांकी, व्यंग्य, ललित निबंध और बाल साहित्य के लेखन में गतिपूर्वक सलग्न डॉ. गिरिराज वर्तमान में वर्धमान महाविद्यालय, बिजनौर (उप्र.) के स्नातकोत्तर एवं शोध विभाग में वरिष्‍ठ हिंदी प्रवक्‍ता हैं । हिंदी शोध तथा संदर्भ-साहित्य की दृष्‍ट‌ि से प्रकाशित उनके विशिष्‍ट ग्रंथों- शोध-संदर्भ (तीन भाग), तुलसी मानस- संदर्भ तथा सूर साहित्य-संदर्भ-को गौरवपूर्ण स्थान प्राप्‍त है ।

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