Garv Se Kaho

· Vani Prakashan
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Giới thiệu về sách điện tử này

हम न अच्छे घरों में रहते हैं, न ढंग का खाना खाते हैं, न ही अच्छा पहनते हैं। पानी तक साफ़ नहीं पीते। हमारा अच्छा रहना तुम लोगों को खटकता है। तुम लोगों ने हमारे खेत, हमारा सुख-चैन छीन लिया। हमें नंगा किया। हमें जान से मारते रहे। हमारे पास है ही क्या? गधे, कुत्ते, सूअर, झाडू! वह भी तुमसे देखा नहीं जाता? हम अछूत हैं लेकिन हैं तो इन्सान! हमारी वेदना आप लोगों की समझ में नहीं आयी? कभी भी तुम लोगों ने हमारी पुकार को सुना है? हम कभी तुम लोगों के विरोध में गये नहीं । तुम लोगों ने तरह-तरह से जीना मुश्किल किया। फिर भी हमने गाँव छोड़ा नहीं। गाँव के साथ रहे। हमसे इतना बैर क्यों? हमने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है? तुम्हारी जूठन पर हम ज़िन्दा रहते हैं। न तुम्हारे घर में आते हैं, न मन्दिर, न श्मशान में। तुम लोगों से चार कदम दूर रहते हैं। तुम लोगों का हमारी परछाईं से परहेज़ है। हमारी परछाईं से, स्पर्श से तुम भ्रष्ट होते हों। हम गाँव के बाहर रहते हैं। तुम्हारे गाँव की सफ़ाई करते हैं। मरे जानवर ढोते हैं। तुमसे आँख उठाकर बात तक नहीं करते। न कभी उल्टा जवाब देते हैं। तुम लोगों का थूक झेलते हैं। तुम्हारी दी हुई भीख पर जीते हैं फिर भी तुम हमें क्यों सताते हो? इसी उपन्यास से

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Giới thiệu tác giả

शरणकुमार लिंबाले जन्म : 1 जून 1956 शिक्षा : एम.ए., पीएच.डी. हिन्दी में प्रकाशित किताबें : अक्करमाशी (आत्मकथा) 1991 देवता आदमी (कहानी संग्रह) 1994 दलित साहित्य का सौन्दर्यशास्त्र (समीक्षा) 2000 नरवानर (उपन्यास) 2004 दलित ब्राह्मण (कहानी संग्रह) 2004 हिन्दू (उपन्यास) 2004 बहुजन (उपन्यास) 2009 दलित साहित्य : वेदना और विद्रोह (सम्पादन) 2010 झुंड (उपन्यास) 2012 प्रज्ञासूर्य : डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर 2013 गैर-दलित (समीक्षा) 2017 दलित पैन्थर (सम्पादन) 2019 यल्गार (कविता संग्रह) 2020 सनातन (उपन्यास) 2020 ई-मेल : [email protected]/ पद्मजा घोरपड़े (एम.ए., पीएच. डी., हिन्दी) हिन्दी के व्याख्याता, एसोसिएट प्रोफेसर, विभागाध्यक्ष, प्रभारी प्राचार्य के रूप में कार्यरत (1981 से 2017) प्रकाशित पुस्तकें-40 कविता संग्रह-4 कहानी संग्रह-2 पत्रकारिता-1 जीवनी-2 समीक्षात्मक-3 हिन्दी-मराठी-हिन्दी-अनुवाद-3 गौरव ग्रन्थ (सम्पादन)-3 अनुवाद एवं सम्पादन-2 हिन्दी-मराठी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित समीक्षात्मक लेख एवं अनुवाद-80 सर्जना साहित्य एवं कला मंच की स्थापना एवं सचिव (1986 से 2000) सम्प्रति : 'परिक्रमा' आधारभूत सामाजिक सेवाकार्य न्यास की स्थापना एवं न्यास के प्रमुख न्यासी, अध्यक्ष के रूप में कार्यरत.

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