Duttatreya Ke Dukh

· Vani Prakashan
5.0
Maoni moja
Kitabu pepe
144
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Kuhusu kitabu pepe hiki

'उदय की कहानियों पर हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं और साहित्यिक हलकों में जो 'विमर्श' जारी है उसे देखकर लगता है कि संपादकों, समीक्षकों और ‘विमर्शकारों' को वह ज़रूरी दुश्मन मिल गया है, जिसका इंतज़ार उन्हें बहुत दिनों से था और जिसके बगैर हिन्दी की साहित्यिक-संस्कृति के प्रवक्ताओं को अपनी अस्मिता को परिभाषित करना मुश्किल लग रहा था। उदय प्रकाश के लेखन के इर्द-गिर्द एक अच्छा खासा कुटीर उद्योग विकसित हो चुका है, और डर यह लग रहा है कि कहीं उदय इस बस्ती और इसके शोरो-गुल के ऐसे आदी न हो जाएँ कि इसके बग़ैर उनका काम ही न चले। या इस उद्योग को चलाये रखने को वे अपनी ज़िम्मेदारी न समझने लगें। दूसरी 'चिन्ताजनक’ बात यह है कि गो उदय के बिना। समकालीन हिन्दी कहानी पर कोई बहस ठीक से नहीं की जा सकती, पर इस केंद्रीयता के बावजूद उनके काम पर गंभीर और सार्थक आलोचना ढ्ढ़े नहीं मिलती। मुझे लगता है कि उदय के काम पर अच्छी। समालोचना उन नए पाठकों और हिन्दीतर भाषा के लेखकों और समालोचकों के बीच से आएगी, जिन्हें उदय की कहानियों ने अपने ज़ोर से अपनी ओर खींचा है। इस संग्रह की कहानियाँ उसी पाठक की तलाश में हैं।’ - असद ज़ैदी

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5.0
Maoni moja

Kuhusu mwandishi

'उदय की कहानियों पर हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं और साहित्यिक हलकों में जो 'विमर्श' जारी है उसे देखकर लगता है कि संपादकों, समीक्षकों और ‘विमर्शकारों' को वह ज़रूरी दुश्मन मिल गया है, जिसका इंतज़ार उन्हें बहुत दिनों से था और जिसके बगैर हिन्दी की साहित्यिक-संस्कृति के प्रवक्ताओं को अपनी अस्मिता को परिभाषित करना मुश्किल लग रहा था। उदय प्रकाश के लेखन के इर्द-गिर्द एक अच्छा खासा कुटीर उद्योग विकसित हो चुका है, और डर यह लग रहा है कि कहीं उदय इस बस्ती और इसके शोरो-गुल के ऐसे आदी न हो जाएँ कि इसके बग़ैर उनका काम ही न चले। या इस उद्योग को चलाये रखने को वे अपनी ज़िम्मेदारी न समझने लगें। दूसरी 'चिन्ताजनक’ बात यह है कि गो उदय के बिना। समकालीन हिन्दी कहानी पर कोई बहस ठीक से नहीं की जा सकती, पर इस केंद्रीयता के बावजूद उनके काम पर गंभीर और सार्थक आलोचना ढ्ढ़े नहीं मिलती। मुझे लगता है कि उदय के काम पर अच्छी। समालोचना उन नए पाठकों और हिन्दीतर भाषा के लेखकों और समालोचकों के बीच से आएगी, जिन्हें उदय की कहानियों ने अपने ज़ोर से अपनी ओर खींचा है। इस संग्रह की कहानियाँ उसी पाठक की तलाश में हैं।’ - असद ज़ैदी

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