दहन-हरियश राय का यह उपन्यास धर्मवाद, सम्प्रदायवाद और सामन्ती सोच के त्रासदपूर्ण जीवन-सन्दर्भों को इस तरह हमारे सामने रखता है कि हमें लगता है कि ये सभी सन्दर्भ मानवता विरोधी हैं और इन्हें बदलने की ज़रूरत है। यह उपन्यास सम्प्रदायवाद, जाति व्यवस्था, पूँजी और सत्ता के गठजोड़ के बीच हमारे जीवन को रोचक अन्दाज़ में उकेरते हुए शिक्षा जगत् में बन रहे नये-नये सन्दर्भों और समीकरणों को भी सामने रखता है। सौम्या और विजय माही आज के नये पाखण्डों, विश्वासों और जड़ मान्यताओं के बीच से गुज़रते हुए नये मूल्यों और नयी आशाओं का संचार करते हैं। धर्मवाद और सामन्ती सोच के ख़िलाफ़ खड़ी सौम्या का जीवन कठिनाइयों से भरपूर है । वह वैज्ञानिक सोच के साथ धार्मिकता और पितृसत्ता के ख़िलाफ़ खड़ी होती है और उसका साथ देता है विजय माही जिसकी यह उम्मीद बरकरार है कि एक दिन ज़माना बदल जायेगा और बहुत सारे लोग होंगे जो ज़माने को बदलने में सारथी का काम करेंगे यह उपन्यास अन्धविश्वास को ख़ारिज कर मनुष्यता और मानवीयता के स्रोतों की तलाश करता है मानवीय जीवन की संवेदनाओं को दर्ज करते हुए यह उपन्यास हमारे आज के समय को संजीदगी के साथ सामने रखता है और जीवन में उन मूल्यों की तलाश करता है जो बेहतर मनुष्य और बेहतर समाज के निर्माण में सहायक होते हैं।