तीन दशकों तक भारत परमाणु शक्ति के रूप में उभरने की दिशा में आत्मसंयम बरतने की नीति अपनाता आ रहा था । 11 - 13 मई, 1998 को भारत की रक्षानीति में नया मोड़ आया । इस दिन भारत ने परमाणु परीक्षण किए । यह राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में युगांतरकारी घटना है । इसी दिन भारत ने यह घोषणा की कि अब यह देश परमाणु शक्ति-संपन्न राष्ट्र बन चुका है । इसी दिन से भारत की रक्षानीति में नया अध्याय आरंभ हो गया था । भारत की विदेश नीति पाँच दशक पुरानी है; जबकि परमाणु नीति इसी घटना के साथ आरंभ हुई । राष्ट्रीय स्तर पर इन परीक्षणों के बाद यह आवश्यकता उभरकर सामने आई कि परमाणु शक्ति- संपन्न राष्ट्र के रूप में भारत को अधिक सुस्पष्ट नीति तैयार करनी चाहिए । अब, हमें विश्वसनीय प्रतिनिवारण क्षमता (deterrance) के सिद्धांत एवं कार्यनीति पर विचार करना है तथा आवश्यक कमांड और नियंत्रण प्रणालियों को आवश्यकता के अनुरूप बनाना है, ताकि आकस्मिक रूप से (दुर्घटनावश) या गलत अनुमान से होनेवाले परमाणु संबंधी खतरे की संभावना कम-से-कम की जा सके । निरस्त्रीकरण से अप्रसार की ओर मुड़ने तथा अप्रसार व्यवस्था के दबावों के सापेक्ष भारत द्वारा गए परीक्षणों तथा परमाणु शक्ति के बारे में निर्णय लिया गया है । भारत इस व्यवस्था के फंदों को तोड़ पाने में सफल हो गया है । इन बाधाओं से परमाणु नीति के संदर्भ में भारत द्वारा अपनाए गए खुले विकल्प ' पर अप्रासंगिक दबाव बढ़ रहा था । क्षेत्रीय स्तर पर इन परीक्षणों से यह प्रमाणित हो गया कि इस क्षेत्र में लंबे समय से परमाणु और मिसाइल का प्रसार हो रहा है तथा यह भी स्पष्ट हो गया कि यह प्रसार किस सीमा तक हो चुका है । एक ओर परमाणु शक्ति-संपन्न राष्ट्र तथा दूसरी ओर चीन और पाकिस्तान के बीच रणनीति-विषयक सहयोग से भारत की सुरक्षा के प्रति नकारात्मक निहितार्थों के साथ-साथ इनके आधार भी तैयार होने लगे थे । परमाणु परीक्षणों से भारत रणनीति-विषयक माहौल को नया रूप देना चाहता है, दिन पर दिन बढ़ती जा रही विषमता दूर करना चाहता है तथा संक्रांति के दौर से गुजर रहे विश्व के सामने खड़ी सामरिक अनिश्चितताओं से निपटने के लिए अपनी क्षमताएँ बढ़ाना चाहता है, ताकि अपनी सुरक्षा तथा मूल हितों को भी बचाया जा सके । इस पुस्तक में इन सभी मुद्दों का पता लगाने तथा इनका विश्लेषण करने का प्रयास किया गया है, ताकि विभिन्न स्तरों पर आवश्यक तार्किक नीति संबंधी दृष्टिकोण एवं वस्तु-स्थिति का आकलन किया जा सके । परमाणु राष्ट्र के रूप में भारत के अम्युदय से जुड़ी जटिलताओं पर विभिन्न दृष्टिकोणों से विचार किया गया है । इस प्रक्रिया में वस्तु-स्थिति की सही तसवीर पेश करने की कोशिश की गई है । महत्त्वपूर्ण घटनाक्रमों के तुरंत बाद इस पुस्तक में विशद विषय-वस्तु तथा गहन विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है । इसीके साथ-साथ राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में विद्यमान महत्वपूर्ण मसलों का भी सम्यक् अध्ययन किया गया है ।
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