अपने अशोक भाई का काव्य संग्रह ' कहना बहुत जरूरी है ' के प्रकाशन की तिथि अब नजदीक आ गई । वर्ष 2009 से अब तक 13 वर्षों का समय इसी उहापोह में बीता , कि अपने मित्र की उन कालजयी रचनाओं का क्या होगा , कैसे होगा ? किस तरह से अशोक के गीत , गजल और कविता उन पाठकों तक पहुँच सकेंगे , जिनके लिए उनका दिल धड़कता था , सारी अनुभूतियॉ जिनके लिए अभिव्यक्ति बन जाती थी । आखिरकार परमात्मा , ने यह सुयोग बना ही दिया । मन में विचार ये आया कि अशोक की जितनी भी रचना मिल सके , सबसे पहले उन्हें तलाशा जाए । और उन्हें व्यवस्थित करके एक पुस्तक के रूप में सहेज कर , आने वाली तारीखों के हाथों में सौंप दिया जाये । यह काव्य संग्रह उस समय अकस्मात् दिल और दिमाग में उभरकर सामने खड़ा हो गया , जब राष्ट्रीय साहित्य प्रभा मंच जैसे बड़े संगठन का राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के नाते यह रूप रेखा बना रहा था । एक ही क्षण में हमारे हृदय यह फैसला कर लिया , कि किसी भी सूरत में अपने अशोक भाई की कविताओं की तलाश कर प्रकाशित कराना है , और मंच के राष्ट्रीय अधि विशन में ही लोकार्पण भी होगा । एक निश्छल मित्रभाव हमारे सिर चढकर हर दिन बोलने लगा , और यह किताब आकार में आ गई । अशोक भाई से भी हमारी मुलाकात का भी एक अविस्मरणीय प्रसंग है । वर्ष 1981 में ठाकुर रणमत सिंह महाविद्यालय रीवा में भूगोल विषय से एम.ए की पढाई कर रहा था । हमारे ही समय में एक आई.पी.एस अधिकारी के पुत्र राजीव त्रिवेदी भी पढ़ते थे , वे अंग्रेजी विषय से एम . ए कर रहे थे । राजीव से हमारी मित्रता उन दिनों आकाशवाणी रीवा के गलियारों में हुई । राजीव भाई एक अच्छे अभिनेता थे । एक दिन आकाशवाणी में ही प्रभु जोशी , प्रभात मित्रा से किसी कार्यक्रम को लेकर चर्चा कर रहे थे । तब राजीव भाई आए और बोले- ' अभी जाना नहीं , आपको एक व्यक्ति से मिलवाना है । कुछ देर तक हम इंतजार करते रहे , और राजीव के आ जाने पर आकाशवाणी केन्द्र से बाहर निकले तथा साइंस कॉलेज भवन के सामने पहुॅचकर एक फुटपाथी चाय दुकान के सामने रूक गए । पाँच मिनट बाद ही अशोक पाण्डेय आते दिखे और राजीव को देखकर सीधे हम लोगों के पास आ गए । हमें उन्होनें बताया कि यह अशोक पाण्डेय हैं और आपको ये जानते हैं । हम तीनों वहाॅ से चल पड़े । सामान्य बातचीत करते हुए ओल्ड हॉस्टल पहुँच गए , जहाँ हम रहा करते थे । सामान्य बाते हुई एक दूसरे को जॉचा- परखा , फिर अशोक अपने चाचा कामेश्वर पाण्डेय को सिविल लाइन में मिले बँगले चले गए । उस तारीख से कुछ ऐसा सिलसिला शुरू हुआ कि यदि हम दोनों रीवा में रहे तो हर दिन दो - चार घंटे साथ में रहते । यह तो रहा . अशोक से मिलने का वृत्तांत इस पुस्तक के आकार लेने में हमारा और साथियों से सिर्फ इतना अतिरिक्त प्रयास रहा कि हमने अपने मन की बात को सभी उन मित्रों के समक्ष रखा , जो अशोक को जानते मानते थे । सभी ने हमारे इस फैसले का स्वागत किया । एक दो साथियों को हमारी यह बात ख्याली पुलाव जैसी लगी । लेकिन शेष सभी लोगों ने हमारा उत्साह वर्धन भी किया । अशोक भाई के इकलौते वंशधर चिरंजीव अंकित पाण्डेय , जो फिल्मी दुनिया में एक संगीतकार के रूप में अपने पैर , अपने दम पर जमा चुके हैं , जब जद्दोजहद के बाद उनसे फोन पर संपर्क हुआ , तो उन्होंने न केवल मेरे मन्तव्य को सिर माथे लगाया , वरन् अशोक भाई की बिखरी हुई रचनाओं को उपलब्ध कराने में पूरा सहयोग दिया । पुत्रवधू सीपी झा भी इस काम में पूरी तरह से अंकित उपाख्य आशू राजा के साथ लगी रहीं । इन दोनों को न तो धन्यवाद कह सकता और आभार कैसे जताऊँ , यह समझ में नहीं आ रहा । जहाँ से जो भी रचना मिली . उनको वहाँ से हासिल करने का प्रयत्न किया , फिर भी बहुत सारी कविता , गजल गीत अभी भी छूट रहे हैं । आदरणीय नर्मदा प्रसाद मिश्र ' नरम ' जिनके साहित्यिक आश्रम में रहकर अशोक भाई और अन्य मित्रों के साथ जीवन के सर्वाधिक उपलब्धि पूर्ण दिनों को जीने का और बेहतर सिरजने का अवसर मिला । उनके प्रति दोहरा आभार ज्ञापित करता हूँ । देश के श्रेष्ठतम गीतकार आदरणीय शिवकुमार अर्चन ने अस्वस्थता के बावजूद अशोक भाई के बारे में अपने विचार समय के भीतर लिख भेजे , उनके प्रति भी विनम्र आभार लिखता हूँ । श्री अर्चन ने इस कार्य को आवश्यक बताते हुए एक सयाने रचनाधर्मी के नाते उत्साहवर्धन भी किया । डॉ . प्रणय ने न केवल मित्र अशोक पर संस्मरणात्मक व रचना केन्द्रित आलेख लिखे , वरन उन्होंने रेखाचित्र बनाकर हमारे काम को और अधिक निखारने का सद्प्रयास किया । प्रणय भाई के प्रति आभार बनता है । डॉ . शिवशंकर मिश्र ' सरस , सनत कुमार सिंह बघेल , दीपक तन्हा और अशोक भाई के साथ हम सभी के अजीज रहे , मुकेश श्रीवास्तव ( चित्रेश चित्रांशी ) , नसीर नाजुक ( मानपुर ) के प्रति हमारे मन से आदर सहित आभार सहज रूप से संप्रेषित है , आप सभी स्वीकार करें । उन समस्त रचनाधर्मियों खासतौर से राष्ट्रीय साहित्य प्रभा मंच के तमाम पदाधिकारियों , सदस्यों के प्रति भी हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करते हैं । इस पुस्तक को सुधी पाठकों के हाथों तक व्यवस्थित तरीके से पहुँचाने में प्रतिष्ठित परिमल प्रकाशन और उसके कर्ताधर्ता ' अंकुर शर्मा के प्रति हार्दिक धन्यवाद ज्ञापित किये बगैर आभार की श्रृंखला पूरी नहीं होती । 2 अप्रैल 2022 ( 21 ) सुदामा शरद राष्ट्रीय अध्यक्ष राष्ट्रीय साहित्य प्रभा मंच संपादक मीडिया किंग