Anushangik : Mahasamar - 9

· Vani Prakashan
৩.৭
৩টি রিভিউ
ই-বুক
272
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এই ই-বুকের বিষয়ে

‘रजत संस्करण’ का यह नवम और विशेष खंड है। इसे ‘आनुषंगिक’ कहा गया, क्योंकि इसमें ‘महासमर’ की कथा नहीं, उस कथा को समझने के सूत्र हैं। हम इसे ‘महासमर’ का नेपथ्य भी कह सकते हैं। ‘महासमर’ लिखते हुए, लेखक के मन में कौन-कौन सी समस्याएँ और कौन-कौन से प्रश्न थे? किसी घटना अथवा चरित्र को वर्तमान रूप में प्रस्तुत करने का क्या कारण था? वस्तुतः यह लेखक की सृजनप्रक्रिया के गवाक्ष खोलने जैसा है। ‘महाभारत’ की मूल कथा के साथ-साथ लेखक के कृतित्व को समझने के लिए यह जानकारी भी आवश्यक है। यह सामग्री पहले ‘जहाँ है धर्म, वहीं है जय’ के रूप में प्रकाशित हुई थी। अनेक विद्वानों ने इसे ‘महासमर’ की भूमिका के विषय में देखा है। अतः इसे ‘महासमर’ के एक अंग के रूप में ही प्रकाशित किया जा रहा है।

प्रश्न ‘महाभारत’ की प्रासंगिकता का भी है। अतः उक्त विषय पर लिखा गया यह निबंध, जो ओस्लो (नार्वे) में मार्च 2008 की एक अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में पढ़ा गया था, इस खंड में इस आशा से सम्मिलित कर दिया गया है, कि पाठक इसके माध्यम से ‘महासमर’ को ही नहीं ‘महाभारत’ को भी सघन रूप से ग्रहण कर पाएँगे।

अंत में ‘महासमर’ के पात्रों का संक्षिप्त परिचय है। यह केवल उन पाठकों के लिए है, जो मूल ‘महाभारत’ के पात्रों से परिचित नहीं हैं। इसकी सार्थकता अभारतीय पाठकों के लिए भी है।

इस प्रकार यह खंड ‘आनुषंगिक’ इस कृति को पाठकों के लिए और भी संपूर्ण बना देता है।

রেটিং ও পর্যালোচনাগুলি

৩.৭
৩টি রিভিউ

লেখক সম্পর্কে

नरेन्द्र कोहली का जन्म 6 जनवरी 1940, सियालकोट ( अब पाकिस्तान ) में हुआ । दिल्ली विश्वविद्यालय से 1963 में एम.ए. और 1970 में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की । शुरू में पीजीडीएवी कॉलेज में कार्यरत फिर 1965 से मोतीलाल नेहरू कॉलेज में । बचपन से ही लेखन की ओर रुझान और प्रकाशन किंतु नियमित रूप से 1960 से लेखन । 1995 में सेवानिवृत्त होने के बाद पूर्ण कालिक स्वतंत्र लेखन। कहानी¸ उपन्यास¸ नाटक और व्यंग्य सभी विधाओं में अभी तक उनकी लगभग सौ पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। उनकी जैसी प्रयोगशीलता¸ विविधता और प्रखरता कहीं और देखने को नहीं मिलती। उन्होंने इतिहास और पुराण की कहानियों को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में देखा है और बेहतरीन रचनाएँ लिखी हैं। महाभारत की कथा को अपने उपन्यास "महासमर" में समाहित किया है । सन 1988 में महासमर का प्रथम संस्करण 'बंधन' वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हुआ था । महासमर प्रकाशन के दो दशक पूरे होने पर इसका भव्य संस्करण नौ खण्डों में प्रकाशित किया है । प्रत्येक भाग महाभारत की घटनाओं की समुचित व्याख्या करता है। इससे पहले महासमर आठ खण्डों में ( बंधन, अधिकार, कर्म, धर्म, अंतराल,प्रच्छन्न, प्रत्यक्ष, निर्बन्ध) था, इसके बाद वर्ष 2010 में भव्य संस्करण के अवसर पर महासमर आनुषंगिक (खंड-नौ) प्रकाशित हुआ । महासमर भव्य संस्करण के अंतर्गत ' नरेंद्र कोहली के उपन्यास (बंधन, अधिकार, कर्म, धर्म, अंतराल,प्रच्छन्न, प्रत्यक्ष, निर्बन्ध,आनुषंगिक) प्रकाशित हैं । महासमर में 'मत्स्यगन्धा', 'सैरंध्री' और 'हिडिम्बा' के बारे में वर्णन है, लेकिन स्त्री के त्याग को हमारा पुरुष समाज भूल जाता है।जरूरत है पौराणिक कहानियों को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में समझा जाये। इसी महासमर के अंतर्गततीन उपन्यास 'मत्स्यगन्धा', 'सैरंध्री' और 'हिडिम्बा' हैं जो स्त्री वैमर्शिक दृष्टिकोण से लिखे गये हैं ।

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