Antral : Mahasamar - 5

· Vani Prakashan
3,0
4 críticas
Livro eletrónico
384
Páginas
As classificações e as críticas não são validadas  Saiba mais

Acerca deste livro eletrónico

इस खण्ड में, द्यूत में हारने के पश्चात पाण्डवों के वनवास की कथा है। कुन्ती, पाण्डु के साथ शत्- श्रृंग पर वनवास करने गयी थी। लाक्षागृह के जलने पर, वह अपने पुत्रों के साथ हिडिम्ब वन में भी रही थी। महाभारत की कथा के अन्तिम चरण में, उसने धृतराष्ट्र, गान्धारी तथा विदुर के साथ भी वनवास किया था।...किन्तु अपने पुत्रों के विकट कष्ट के इन दिनों में वह उनके साथ वन में नहीं गयी। वह न द्वारका गयी, न भोजपुर। वह हस्तिनापुर में विदुर के घर रही। क्यों?

पाण्डवों की पत्नियाँ देविका, बलंधरा, सुभद्रा, करेणुमती और विजया, अपने-अपने बच्चों के साथ अपने-अपने मायके चली गयीं; किन्तु द्रौपदी काम्पिल्य नहीं गयी। वह पाण्डवों के साथ वन में ही रही। क्यों?

कृष्ण चाहते थे कि वे यादवों के बाहुबल से, दुर्योधन से पाण्डवों का राज्य छीनकर, पाण्डवों को लौटा दें, किन्तु वे ऐसा नहीं कर सके। क्यों? सहसा ऐसा क्या हो गया कि बलराम के लिए धृतराष्ट्र तथा पाण्डव, एक समान प्रिय हो उठे, और दुर्योधन को यह अधिकार मिल गया कि वह कृष्ण से सैनिक सहायता माँग सके और कृष्ण उसे यह भी न कह सकें कि वे उसकी सहायता नहीं करेंगे?

इतने शक्तिशाली सहायक होते हुए भी, युधिष्ठिर क्यों भयभीत थे? उन्होंने अर्जुन को किन अपेक्षाओं के साथ दिव्यास्त्र प्राप्त करने के लिए भेजा था? अर्जुन क्या सचमुच स्वर्ग गये थे, जहाँ इस देह के साथ कोई नहीं जा सकता? क्या उन्हें साक्षात् महादेव के दर्शन हुए थे? अपनी पिछली यात्रा में तीन-तीन विवाह करनेवाले अर्जुन के साथ ऐसा क्या घटित हो गया कि उसने उर्वशी के काम-निवेदन का तिरस्कार कर दिया।

इस प्रकार के अनेक प्रश्नों के उत्तर निर्दोष तर्कों के आधार पर ‘अन्तराल’ में प्रस्तुत किये गये हैं। यादवों की राजनीति, पाण्डवों के धर्म के प्रति आग्रह, तथा दुर्योधन की मदान्धता सम्बन्धी यह रचना पाठक के सम्मुख, इस प्रख्यात कथा के अनेक नवीन आयाम उद्घाटित करती है। कथानक का ऐसा निर्माण, चरित्रों की ऐसी पहचान तथा भाषा का ऐसा प्रवाह -नरेन्द्र कोहली की लेखनी से ही सम्भव है।

Classificações e críticas

3,0
4 críticas

Acerca do autor

नरेन्द्र कोहली का जन्म 6 जनवरी 1940, सियालकोट ( अब पाकिस्तान ) में हुआ । दिल्ली विश्वविद्यालय से 1963 में एम.ए. और 1970 में पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की । शुरू में पीजीडीएवी कॉलेज में कार्यरत फिर 1965 से मोतीलाल नेहरू कॉलेज में । बचपन से ही लेखन की ओर रुझान और प्रकाशन किंतु नियमित रूप से 1960 से लेखन । 1995 में सेवानिवृत्त होने के बाद पूर्ण कालिक स्वतंत्र लेखन। कहानी¸ उपन्यास¸ नाटक और व्यंग्य सभी विधाओं में अभी तक उनकी लगभग सौ पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं। उनकी जैसी प्रयोगशीलता¸ विविधता और प्रखरता कहीं और देखने को नहीं मिलती। उन्होंने इतिहास और पुराण की कहानियों को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में देखा है और बेहतरीन रचनाएँ लिखी हैं। महाभारत की कथा को अपने उपन्यास "महासमर" में समाहित किया है । सन 1988 में महासमर का प्रथम संस्करण 'बंधन' वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हुआ था । महासमर प्रकाशन के दो दशक पूरे होने पर इसका भव्य संस्करण नौ खण्डों में प्रकाशित किया है । प्रत्येक भाग महाभारत की घटनाओं की समुचित व्याख्या करता है। इससे पहले महासमर आठ खण्डों में ( बंधन, अधिकार, कर्म, धर्म, अंतराल,प्रच्छन्न, प्रत्यक्ष, निर्बन्ध) था, इसके बाद वर्ष 2010 में भव्य संस्करण के अवसर पर महासमर आनुषंगिक (खंड-नौ) प्रकाशित हुआ । महासमर भव्य संस्करण के अंतर्गत ' नरेंद्र कोहली के उपन्यास (बंधन, अधिकार, कर्म, धर्म, अंतराल,प्रच्छन्न, प्रत्यक्ष, निर्बन्ध,आनुषंगिक) प्रकाशित हैं । महासमर में 'मत्स्यगन्धा', 'सैरंध्री' और 'हिडिम्बा' के बारे में वर्णन है, लेकिन स्त्री के त्याग को हमारा पुरुष समाज भूल जाता है।जरूरत है पौराणिक कहानियों को आधुनिक परिप्रेक्ष्य में समझा जाये। इसी महासमर के अंतर्गततीन उपन्यास 'मत्स्यगन्धा', 'सैरंध्री' और 'हिडिम्बा' हैं जो स्त्री वैमर्शिक दृष्टिकोण से लिखे गये हैं ।

Classifique este livro eletrónico

Dê-nos a sua opinião.

Informações de leitura

Smartphones e tablets
Instale a app Google Play Livros para Android e iPad/iPhone. A aplicação é sincronizada automaticamente com a sua conta e permite-lhe ler online ou offline, onde quer que esteja.
Portáteis e computadores
Pode ouvir audiolivros comprados no Google Play através do navegador de Internet do seu computador.
eReaders e outros dispositivos
Para ler em dispositivos e-ink, como e-readers Kobo, tem de transferir um ficheiro e movê-lo para o seu dispositivo. Siga as instruções detalhadas do Centro de Ajuda para transferir os ficheiros para os e-readers suportados.