आत्मा और पुनर्जन्म दूसरे अन्य विषयों की तरह एक बहुचर्चित विषय है। जब से मानव ने चिंतन आरंभ किया है तभी से सृष्टि, इस की उत्पत्ति, मैं क्या हूं? मृत्यु के बाद क्या होता है? आदि मानव चिंतन के विषय रहे हैं। जीवन और मन का मिश्रण ही तथाकथित आत्मा है, क्योंकि जीवन और मन शरीर के बिना नहीं रह सकते। अतः अजरअमर आत्मा की बातें करना क्या व्यर्थ नहीं है?इसलिए आत्मा और पुनर्जन्म संबंधी धारणाओं के बारे में किसी एक वर्ग के विचारों को धर्मनिरपेक्ष संविधान के तहत कानूनी मान्यता-देना क्या अन्य वर्गों की वैचारिक, दार्शनिक और धार्मिक स्वतंत्रता का अपहरण नहीं है? ‘आत्मा और पुनर्जन्म’ पुस्तक एक निष्पक्ष विचारधारा प्रस्तुत कर आप को भारतीय जनजीवन के तुलनात्मक अध्ययन तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण का दर्शन कराएगी।