ANUBANDH

· MEHTA PUBLISHING HOUSE
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सामान्य माणसाची नस न् नस पकडत माणसाच्या मनात खोलवर स्वभावांचे विविध कंगोरे दाखविणाऱ्या या दर्जेदार कथा... मुली झोपल्या आहेत असे पाहून दातारबाई हलकेच उठल्या. दिवा मोठा करून त्यांनी सुभाताईचे पत्र काढले. त्या पत्राला उत्तर लिहिण्यासाठी त्या बसल्या; पण काय उत्तर लिहावे ते त्यांना समजेना. शाईत बुडवलेला टाक त्यांच्या हातात होता. समोर कोरा कागद होता. टाकावर शाई वाळत होती. आणि दातारबाई कोपऱ्या-कोपऱ्यातला काळोख निरखीत शून्यपणे, कोरड्या डोळ्यांनी समोर बघत होत्या. 

 


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