सत्ययुग में भगवान विष्णु के डर से बचने के लिए सारे राक्षस रसातल में जा छुपे थे. ऋषि पुलत्स्य और केकसी के बड़े बेटे दशानन को लंका पर अपना अधिकार जमाना था. उसे देवताओं से राक्षसों की हार का बदला लेना था, और धरती पर से भगवान विष्णु का नामोनिशान मिटा देना था. अपने इस मकसद को पूरा करने के लिए, वो ब्रह्मा से वरदान पाने के लिए वह घोर तपस्या कर रहा था. वही मनुके व्दारा स्थापित अयोध्या नगरी में इक्ष्वाकुवंशी महाराज अज के पुत्र महाराज दशरथ का राज था. जिन्हें कई वर्षो से एक ही चिंता खाए जा रही थी उनका कोई पुत्र नही हैं. उसी समय, हिमालय में वेदवती नाम की तपस्वी कन्या भगवान विष्णु से शादी करने के लिए तपस्या कर रही थी. पर दुर्भाग्य ने वेदवती के साथ कुछ ऐसा खेल खेला की उसे फिरसे जन्म लेना पड़ा, जनककुमारी सीता के रूपमें, और जिस रावण ने उसके सतीत्व पर हाथ डाला था, उसके विनाश का वह कारण बनी.