Pobres gentes

· NoBooks Editorial · एआई की मदद से Google के जनरेट किए गए Simón की आवाज़ में ऑडियोबुक
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Makar Dévushkin lleva treinta años copiando documentos en un departamento administrativo de San Petersburgo y vive en la habitación más barata de una pensión, junto a la cocina. A través de la ventana ve, sin embargo, a la joven Varvara, pariente lejana suya, que es toda su alegría. Varvara, huérfana, sin dinero ni posición, ha huido de una pariente agriada y maquiavélica e intenta ganarse la vida bordando. Varvara y Makar se cartean, se prestan dinero y libros, comparten decepciones y pequeñas alegrías. Son pobres e insignificantes, pero tienen amor propio y llegan a ver en las cartas que se escriben –en la literatura– una forma de dignidad.

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