यह छोटे शहर में स्थापित ऐसे डिग्री कॉलेज की कहानी है जिसके पास से रेलवे लाइन गुजरती है। इसलिए विद्यार्थी अपने पीरियड के विषय से अधिक उस ओर से गुजरने वाली ट्रेन के समय की जानकारी रखते हैं। कॉलेज 'को-एड' है इसलिए लड़कियाँ भी पढ़ती हैं। अन्य विषयों के लड़कों को यह अफसोस है कि लड़कियों की संख्या बायोलोजी या सायकोलोजी में ही अधिक क्यों है? कॉलेज में लड़कियाँ दो-चार के समूह में या अकेले होने पर रिक्शे से कॉलेज आना सुरक्षित महसूस करती हैं। ऐसे में अगर कोई लड़की अपने कॉलेज के पहले ही दिन अकेले पैदल चलते हुए कॉलेज आती है, तो इसकी चर्चा लड़कियों से अधिक लड़कों के बीच में होना स्वाभाविक है। ...और तब कोई भी चर्चा जोर नहीं पकड़ती है, जब कोई व्याख्याता या लेक्चरर कॉलेज के आसपास के अपने खेत पर घूमते-घूमते मिट्टी सने अपने जूतों या चप्पलों में ही सीधे क्लास में आ जाए। लेकिन जब कोई वेस्पा स्कूटर खरीद लेता हो, चाहे वह कोई प्रोफेसर ही क्यों न हो, तो चर्चा होने लगती है। यही चर्चा तब जोर पकड़ लेती है जब फलाना सर का फलाना रंग वाला वेस्पा ढिकाना सर जी के घर के सामने रुका हुआ हो, जब ढिकाना सर शहर से बाहर गए हुए हों। कॉलेज में जब छात्र परिषद के चुनाव की घोषणा होती है, राजनीति गर्माती है और उसी में बाहरी तत्वों का भी दखल बढ़ता है। कॉलेज के सही सोच वाले प्रोफेसर और विद्यार्थी मिलकर क्या कॉलेज को राजनीति के अखाड़ा बनने से बचा पाते हैं?
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